________________
रघुवरजसप्रकास
। १०६ तीरथां इळा अट अट स तं, देणौ चित सतसंग दुस। दस सिर खळ गंजण दाख रे, जांनंकीनायक सुजस ॥ २५७
अहर अळग कवित छप्पै
पढ़तां होठ मिळे नहीं, ऊ प फ ब भ म न आंण । कहियौ अह अन कवि कहै, अहर अळग सौ जाण ॥ २५८
अथ अहर अळग छप्पै उदाहरण नारायण नरकार, नाथ नरहर जग-नायक । कंज नयण कर कंज, तरण संतां खळ-तायक ॥ धरणीधर गिरधार धनौ स्रीधर धू धारण । हाथी ग्रह निज हाथ, तोयहूता झट तारण । करुणा निधान कोदंड कर, नित चालण यळ रीत नय । रघुकुळ दिनेस जन लाज रख, जग अधार औधेस जय ॥ २५६
अथ विधांनीक जात छप्पै कवित लछण
ले खटहूता नव लगै, वरणै मांझ विधांन । विधांनीक छप्पय वदै, वडा सुकवि बुधवांन ॥ २६०
अथ सप्त विधांन छप्पै उदाहरण कमळ उदध कळवरछ, भांण मघाण, मेर ससि । वदन, सहज, दत, तेज, राज, गरूवत दीठ लसि ।।
२५७. खळ-असुर, राक्षस । गंजण-नाश करने वाला । दाख-कह ।। २५८. अह-शेषनाग । अन-अन्य । प्रहर-अधर, होठ । अळग-दूर, पृथक । २५६. नरकार-निराकार । कंज-कमल। कर-हाथ । तरण संतां-संतोंका उद्धार करने
वाला। खळ-तायक-असुरोंका संहार करने वाला। तोयहूंता-पानीसे । झट-शीघ्र । तारण-उद्धार करने वाला । कोदंड-धनुष । चालण-चलने वाला । यळ-इला, पृथ्वी।
नय-नीति । दिनेस-सूर्य । पौधेस-अवधेश, श्रीरामचंद्र । २६०. विधांन-किसी कार्यकी विधि या व्यवस्था। बदै-कहते हैं। बुधवांन-बुद्धिमान । २६१. उदध-उदधि, समुद्र । कळवरछ-कल्पवृक्ष । भाण-सूर्य । मधवांण-इन्द्र । मेर-सुमेरु
पर्वत । ससि-चद्र। वदन-मुख । दत-दान । गरूवत-गंभीर, भारी । दीठ-दृष्टि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org