________________
६]
रघुवरजसप्रकास ___ अ दस अखिर गीत कवित छंदकै पैल्ही न होय । एकार आगलौ अईकार (ऐ) अोकार आगलौ अऊकार (औ) । अंकार पागलौ अः कार । मकार आगलौ यकार । लकार आगलौ सकार। सकार आगलौ ल्लकार नै क्षकार । अ दस आखर भाखारै पाद न होवै । नाग यूं कहयौ छै । इति अरथ ।
अथ गुरु लघु कथनं
गण संजोगी आद गुरु, संजुत ब्यंदु गुरेण । गुरु फिर बक्र दुमत्त गणि, लघु सुद्ध एक कळेण ॥ १७ . उदाहरण
दूहौ लंक अम्हींणा भाग लग, सुपनै लिखीउ सोय । मौजी राघव पलकमैं, जन सरणागत जोय ॥ १८
संजोगी पाद वरण विचार
दहौ संजोगी पहलौ अखिर, वस कोई ठौड़ वसेख । कियां विचार प्रकार किण, लघु संग्या तिण लेख ॥ १६
उदाहरण
रे नाहर रघुनाथरा, यळ जाहर दत अंक । विगर लिन्हाई छिनक विच, लहर दिन्हाई लंक ॥२०
१७. संजोगी-संयुक्त। संजुत-संयुक्त। व्यंदु-बिंदु। कळेण-(कला) मात्रासे । १८. लंक-लंका। अम्होंणा-मेरा। सोय-वह। मौजी-उदार । १६. वसेख-विशेष । २०. यळ-इला, पृथ्वी। दत-दान । छिनक विच-क्षण भरमें ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org