________________
[७
रघुवरजसप्रकास लघु दीरघ दीरघ लघु करण विधि वरणणं
दूही लघु दीरघ दीरघ लघु, पढ़ियां सुधरै छंद । दीह लघु लघु दीह करि, पढ़ि कविराज अनंद ॥ २१
उदाहरण
दूहौ सिर दस दस सिर साबतै, रांम हतै धख राख । बिबुधांणी चक्रत हुवा, अह ह ह वाणी पाख ॥ २२ अथ मंगळादिक वरण गण नाम कथनं
दूही मगण नाम संभू मुणै, राक्षस तगण रसाळ। यगण बाज आखै इळा, जगण उरोज विसाळ ॥ २३ तगण व्यौम कर सगण तव, रगण सूरमौ राख । वरण गणां वाळा विहद, यम कवि नाम स ाख ॥ २४
अथ मात्रा पंच गण नाम कथनं
कवित्त छप्पै ट ठ ड ढ ण गण अरेह, मात्र गण पंच प्रमाणे । टगण छ कळ तेरह सुभेद, कवि ठगण बखाणे ॥ पंच कळा अठ भेद, डगण चव कळ सु भेद पंच। ढगण तीन कळ तीन, भेद भाखंत नाग संच ।। णगणहसु दु कळ दुव भेद निज, लिख प्रसतार निहारियै। तिण भेद तेर अठ पंच त्रय, दुव जिण नाम उचारियै ॥ २५
२१. दोह-दीर्घ। २२. धख-क्रोध । विबुधांणी-देवता। पाख-कहना । २३. रसाळ-रसयुक्त । इटा-पृथ्वी । २४. विहद-असोम । यम-ऐसे । २५, प्ररेह-पवित्र । छकळ-छ मात्रा। सत्य ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainel
www.jainelibrary.org