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रघुवरजसप्रकास दूहौ
सत्रु मित्र मिळ सुन्य फळ, सत्रु दास जिय हांण । सत्रु उदाससं हांण अरि, अरि नायक खय जांण ॥ १२
दोसादोस कथन दूह
नर- कायब करवा निमत, वद गण गण विचार | गुण राघव मझ असुभ गण, न कौ दोस निरधार || १३
अथ स्टदगध अखिर कथनं
दूह
ह झ ध र घ न ख भ आठ ही, दगध अखिर दाखंत | काय वरजित तिकरण, भल किव नह भाखंत ॥ १४ हकारादि स्टदगध ग्रखिर क्रमसूं उदाहरण दूहौ
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हेत हांण तन रोग व्है, नरपत भय धन नास | त्रीया घात निरफळ तवां, जस खय भ्रमण प्रवास ।। १५
अथ भाखा पिंगळ तथा डिंगळका रूपग गीत कंवित, दूहा, गाहा, छंद तथा सरवत्र छंदरं याद दस ग्राखिर नहीं प्रावै नै वरजनीक छै सौ लिखां छां ।
दूहौ
अंमळ अग्रका, दाखल क्ष ह दोय |
क च ट त वरगका अंतका, पद दस वरणन होय ॥ १६ अरथ - ऐ १ २ : ३ य ४ स ५ ल्ल ६ क्ष ७ ड़ पण १० ।
१२. खय - (क्षय) नाश ।
१३. नर-काय - ( नरकाव्य) मनुष्यकी प्रशंसाका काव्य । वद - कह । कौ— कोई ।
१४. कायब - काव्य | १५. तवां - कहता हूँ ।
किव - कवि | भाखंत-कहता है । श्राद - श्रादि, प्रथम |
वरजनीक- त्याज्य ।
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श्राखिर - श्रक्षर ।
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