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रघुवरजसप्रकास
[ २३१ सुज घांसाड़ासीह अबीह अचल्लणा । असर खाग तियाग भुजाडंड झल्लणा ॥ रहचण दस सिर जिसा असह मझ राड़ रे । बेढक अंकी बार धनंकी धाड़ रे ॥ रखवाळण जिग रायहर, रजवट पाळण राह । दिया लखण रघुनाथ दहुँ,नप रिखसाथ निबाह ।। नप रिख साथ निबाह नंद रख नाहरां । पंथ ताड़का निपात जिका कथ जाहरां ॥ परसुबाह हत सर मारीच अताळियौ । जिग कोसिक रिखराज राज रखवाळियौ ॥ रख्ये जिग कोसिक अडुरपुरो, मिथळेस पधार । पंथ अहल्या पाय रज, राधव कियौ उधार ॥ राघव कियौ उधार निपट रिख नाररौ । बळ धानख लख घटे नूपां जिण बाररौ ॥ दासरथी बर सीत पराक्रम दक्खियौ । राघव भंजै धनंख जनक पण रक्खियौ ॥ आवंतां मारग अवध, डरवध हरख अमाप । आय फरस धर आफळण, चाप बैर हर चाप ॥
११६. अबीह-निडर, निर्भय । तियाग-त्याग । भुजाडंड-समर्थ, शक्तिशाली । झल्लणा
धारण करने वाला। रहचण-वंश करनेको, संहार करनेको। दससिर-रावण । मझ-मध्य । राड़-युद्ध । बेढक-जबरदस्त । अकी-अंकित की। बार-समय । धनंकीधनुषधारी । धाड़-धन्य-धन्य । जिग-यज्ञ । निपात-संहार कर, मार कर । जाहरांप्रसिद्ध । परसुबाह-परशुराम । सर-तीर, बारण । अताळियौ-उडाया, दूर फेंका। कोसिक-विश्वामित्र। रिखराज-ऋषिराज । राज-श्रीमान, आप । रखवाळियौरक्षा की। मिथळेस-राजा जनक । पाय-चरण । रिख-ऋषि । दासरथी-श्री रामचन्द्र । बर-पाणिग्रहरण कर । सीत-सीता । दक्खियौ-प्रकट किया, बतलाया। पणप्रण । रक्खियौ-रखा । अवध-अयोध्या। हरख-हर्ष । अमाप-अपार ।
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