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________________ २३२ ] रघुवरजसप्रकास चाप बैर हर चाप जाप धक्ख जपिया । उभै राम जुध कारण ताम अड़ पिया ॥ लछवर धनंख साथ तेज निज हर लिया । रद कर मद दुजराम अवधपुर प्राविया ॥ ११६ अथ मुडैल अठताळौ गीत लछण दूहा चवद प्रथम बो ती चवद, चौथी दस मत जाण । पंच छठी सप्तम चवद, अष्टम दस मत प्रांण ॥ १२० पहल दुती तीजी मिळ, दु गुरु अंत जिण दाख । मिळ तुक चौथी आठमी, अंत लघु जिण आख ॥ १२१ पंचम अठमी सातमी, मिळे अंत गुरु दोय । मुड़ियल अठताळी मुणै, किव जिण नांम सकोय ॥ १२२ प्ररथ जिणरै पहलै तुक मात्रा चवदै होवै। दूजी तुक मात्रा चवदै होवै। तीजी तुक मात्रा चवदै होवै। चौथी तुक मात्रा दस होवै । पांचमी चवदै, छठी चवदै, सातमी चवदै, मात्रा चवदै चवदै होवै । तुक आठमी मात्रा दस होवै । पै'ली दूजी तीजी तुकां मिळे । तुकांत दोय गुरु होय । चौथी तुक आठमी तुकसू मिळे । तुकांत लघु होय । पांचमी, छठी, सातमी तुक मिळे । तुकांत दोय गुरु होय, जिण गीतनै मुडैलअठताळौ कहीजै । अठताळौ ग्रंथांतरसू पिण लछण सुध छ । हमीरपिंगळमें मुडैलअठताळौ कहै छै नै रुगनाथरूपगमें अठताळी हीज कहै छै । अथ मुडैलअठताळौ गीत उदाहरण गीत सुख दियण दुख गमण स्वामी, नाथ त्रिभुवन आपनांमी , भंज दससिर भुजां भांमी, राम भूप अरेह । ११६. मद-गर्व । दुजरांम-द्विज-राम, परशुराम । १२०. बी (द्वी)-दूसरी । ती (तृतीय)-तीसरी । चवद-चौदह । मत-मात्रा। १२१. दुती (द्वितीय)-दूसरी। दु-दो। दाख-कह । पाख-कह । १२२. मणे-कहते हैं। किब-कवि । सकोय-सब । १२३. दियण-देने वाला । गमण-गमाने या मिटाने वाला । अापनांमी-अपने नामसे प्रसिद्धि प्राप्त करने वाला । भांमी-बलया। अरेह-निष्कलंक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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