SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० ] रघुवरजसप्रकास एकतर बंस उधारै रे, निज लोक उभै निस्तारै । साराह जिकां जग सारै रे, अवसर जीह उचार ॥ करुणानिध जनहितकारी रे, बांमै अंग सीतबिहारी । सारी ज्यां बात सुधारी रे, धरियौ उर धानंखधारी ॥ ११६ अथ गीत माळ लछण दूहा दूहौ पहलां दाखजै, चंद्रायणौ सुपच्छ । दूहा उलटै चवथ तुक, सोय झमाळ सुलच्छ ॥ ११७ दूहौ अर चन्द्रायणौ, विहुवै मत्ता छंद । यां लछण कहिया गै, पिंगळ मांझ कव्यंद ॥ ११८ अरथ पै'ां तौ हौ होय । पछै चंद्रायणौ होय । दूहारी चौथी तुक दोय बखत पढी जाय सौ झमाळ नांमा गीत कहीजै । दृहौ चंद्रायणौ दोई मात्रा छंद छै सौ यण पिंगळमें लछण दोयांरा कह्या छै, सौ कांम पड़े तो देख लीज्यौ । दूहौ पैली तुक मात्रा तेरै । तुक दूजी मात्रा इग्यारै । तुक तीजी मात्रा तेरै । तुक चौथी मात्रा इग्यारै | चंद्रायणौ तुक प्रतमात्रा इकीस । अंत रंगण सौ चंद्रायणौ । आाद दूही पछै चंद्रायणौ सौ झमाळ नांमा गीत कहावै । अथ माळ गीत उदाहरण गीत Jain Education International घाड़ा राघव धुर-धमळ, अवनाड़ा ऋणबीह | ऊबेड़ण जाड़ा असह, सुज घांसाड़ा-सीह ॥ ११६. निसतारै - उद्धार करता है । हितकारी-हित करने वाला । बांमै-बायां । धानंखधारीधनुषको धारण करने वाला । चंद्रायणौ - चंद्रायरण नामक मात्रिक छंद । ११८. श्ररर । विहुंव-दोनों । मत्ता - मात्रिक | यां - इस प्रकार, इनका । लछणलक्षण | - पहिले, पूर्व । मांझ-मध्य | ११७. पहलां - प्रथम, पहिले । दाखजै - कहिए । सुपच्छ - पश्चात । चवथ - चतुर्थं । ११६. धाड़ा - धन्य धन्य । धुर-धमळ - अग्रगामी । श्रवनाड़ा- वीर योद्धा । प्रणबीह - निडर, निशंक । ऊबेड़ण - उखड़ना । जाड़ा - जबड़ा । श्रसह - शत्रु । घांसाड़ा- सीह - सेनाको पीछे हटाने वाला, शक्तिशाली । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy