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रघुवरजसप्रकास
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मुखहू अवळीमांण, किसं पायक जस कत्थै दत देखा दत दहू, सुजस जग कहै समथ्यै कासीदी गुण करै, जिका कथ सह जग जां 1 केतक डमरां कुसम उरड़ भमरां दळ आणै ॥ जुग जुग मुख ‘किसना', जपै नित नव नव एहनांण । केकंधा लंका कहै, जस रघुनाथ
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अथ कुंडळणी लछण हौ
उगाही कर आद यक, तुक पलटै धुर कायबरी तुक च्यारि कह, कुंडळणी स
एक सेस अजवाळ, सरब कुळ हेक मेर - गिर हुवै, सौ भगिर विध जिण सह रघुवंस, एक रघुनाथ
वंस
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अथ कुंडली उदाहरण
यिक रघुनाथ उजाळौ सारौ, रघुवंस जेण दुति सरसत । विध जं ू है कळ वाळौ, मझ सह नभं तेज करत तेजोमय ॥ तेजोमय नभ होत, चंदहूता
जग चावौ ।
सरप
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सुजांण ॥ २६६
भंत । कहंत ॥ २७०
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कवित कुंडळिया १ सुध कुंडळिया २ झड़ उलट कुंडलिया ३ दोहाळ कुळिया ४ कु डळणी ५ - इति पंच प्रकार कुंडळिया संपूरण ।
सुभावौ ॥
सिघाळौ 1 उजाळौ ॥ २७१
२६६. प्रवळीमांण- अपने ऐश्वर्यका उपयोग करने वाला, वीर । किसूं- कैसे । पायक - सेवक । कत्थे - कहे । दत-दान । समय-समर्थ । कासीदी - कासिदका कार्य, हरकाराका कार्य । गुण - लाभ | कथ - कथा । सह सब । केतक - केतकी, केवड़ा । डमरां - सुगंधि, महक । कुसुम - पुष्प, फूल ।
२७१. कि- एक । दुति-द्युति । विध-विधु, चन्द्रमा । जूं - जैसा । कळ-कला | मझ-मध्य | सह- सत्र । नभ - श्राकाश । तेजोमय प्रकाशमय । चंदहंता - चन्द्रमासे । चावौ प्रसिद्ध | मेर- गिर - सुमेरु पर्वत । सौ-वैसा । भगिर - प्रयोध्या नरेश दिलीपके पुत्र, भगीरथ । सिघाळौ - श्रेष्ट । उजाळी - प्रकाश, रोशनी ।
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