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रघुवरजसप्रकास अथ कुंडळियौ झड़ उलट लछण
दूही दूही धुर धुर पच्छ तुक, आद अंत उत्नटंत । वीस मत्त चो तुक वळे, सौ झड़ उलट समंत ॥ २६६
___कुडळिया झड़ उलट उदाहरण भुज दंड लीजै भांमणा, अध्रियांवणा अभीत । विध-विध दास वचावणा, जुध पावणा सजीत ॥ जीत जुध पावरणा, आद असुरां जरे ।
सीस दस कुंभ घण, नाद सा स्यंघरे ॥ सधर कर भभीखण, रिव जस रसांमणा । भुजां रघुबर अडर, लीजिये भांमणा ।। २६७
अथ कुंडळियौ जात दोहाळ लछण
सुध के डळिया अंत सुज, एक दूहौ फिर आख । कुंडळियौ दोहाळ कह, भल राघव जस भाख ॥ २६८
___ अथ कुंडळियौ दोहाळ
उदाहरण केकंधा लंका कहे, जस रघुनाथ सुजाण ।
कहै भभीखण रविजी, मुख हू अवळीमांण ॥ २६६. धुर-प्रथम । पच्छ-पश्चात् । मत्त-मात्रा । चो-चार । तुक-चरण । बळे-फिर । २६७. भांमणा-बलैया। अध्रियांवणा-वीर, जबरदस्त, शक्तिशाली । अभीत-निडर, निर्भय ।
विध-विध-तरह-तरहसे । दास-भक्त । वचावणा-बचाने वाला। पावणा-प्राप्त करने वाला । सजीत-विजयी । जरे-नष्ट कर,मार कर । सीस दस-रावण । कंभ-कुंभकर्ण घणनाद-मेघनाद, इन्द्रजीत । सा-समाना, जैसा । स्यंघरे-संहार किये। सधर-हेढ़, मजबूत, निर्भय, निशंक, राज्य या धरा सहित । भभीखण-विभीषण । रिव-रवि, सूर्य ।
रसांमण-रश्मि, किरण । २६८. पाख-कह । भल-श्रेष्ठ, उत्तम । भाख-कह । २६६. केकंधा-किष्किधा । रविजकी-सूर्यवंशीकी, श्रीरामचंद्रजीकी। हं-से। अवळीमांण
अपने ऐश्वर्यका उपभोग करने वाला वीर ।
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