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________________ रघुवरजसप्रकास [ १११ अथ नाट सला छप्पै उदाहरण सूर प्रभवतौ तेज, तेज नंह इम्रत स्रायक । यिम्रत स्रायक चंद, चंद नह स्यांम सुभायक ॥ स्यांम सुभायक मेघ, मेघ नह मायावंतह । मायावंतह साह, साह नाही खर अंतह ॥ खर अंत ततौ चित्रक अखव, नह चित्रक नर जांणिये । नर नहीं नरां नायक निपट, प्रभव-भांण पहचांणिये ॥ २६४ अथ सुद्ध कुडळियौ लछण कायब दूहासं मिळे, कुंडळियौ सुध कत्थ । अम्रत-धुन अनुप्रास घण, स्री रघुनाथ समत्थ ॥ स्री रघुनाथ समत्थ, हत्थ धारण धनु सायक । सेवक सरण सधार, लेख सेवै पद लायक । सीतानाथ सुजाण, पांण खग धन ब्रद पायब । कं डळियौ सौ कहै, मिळे दूहासं कायब ॥ २६५ २६४. सूर-सूर्य । प्रभवती-उत्पन्न करता है, उत्पन्न करता हुआ। इम्रत-अमृत । स्रायक श्रायक, श्रवने वाला, देने वाला। सुभायक-रुचिकर, मनोहर। मायावंतह-धनाढ्य । साह-सेठ। खर-खरदूषण राक्षससे तात्पर्य है । अखव-कह। चित्रक-हरिण । प्रभव-भांण-सूर्यवंशी। नोट-नाट नामक छप्पयका उल्लेख पूर्व २२ छप्पयोंमें मय उदाहरणके हो चुका है-यह नाटसला भी उसीका एक भेद प्रतीत होता है। २६५. कायब-काव्य छंद, यह रोला छंदका ही एक भेद है जिस रोला छंदके चारों चरणोंमें ११वीं मात्रा ह्रस्व हो उसे काव्य-छंद कहते हैं। किसी-किसीके मतसे दोहाके पश्चात् रोला छंदको जोड़ने से ही कुंडलिया छंदकी रचना मानी गई है । कत्थ-कह । अम्रतधुन-अमृत-ध्वनि । यह भी छ चरणका एक मात्रिक छंद है जो दोहा और दोहाके पश्चात् २४ मात्रा अथवा रोला छंदके जोड़नेसे ही बनता है परन्तु अमत-ध्वनिमें यमकालंकारको तीन बार झमकावके पाठ-पाठ मात्रा सहित रखा जाता है। घणबहुत । समत्थ-समर्थ । हत्थ-हस्त. हाथ । धनु-धनुष । सायक-बारण, तीर । सरणसधार-शरणागत रक्षक । लेख-देव, देवता। खग-तीर, बारण । ब्रद-विरुद, यश । पायब-प्राप्त करने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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