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रघुवरजसप्रकास
[ १८६ 'किसन' कहै कर जोड़ कवेसर । नमौ राम रघुवंस नरेसर ॥ ५० अथ मुणाळ नांम गीत सावझडौ लछण
दूहौ आद चरण अट्ठार मत, सोळह अवर सचाळ । जांण सगण तुक अंत जिण, मुण सौ गीत मुणाळ ॥ ५१
अथ मुणाल नाम गीत उपाहरण धैधींगर कदम आवळा धरतौ । झड़ वरसात जेम मद भरतौ ॥ सुज आयौ जळ पीवण सरतौ । करणी जूथ बीच सुख करतौं । मैंगळ कुटंब सहत उनमतरै ।
आब हिलोळ चोळ की अतरै ॥ धं म सुणै चख आग धकतरै । जाजुळ ग्राह जागीयौ जतरै ॥ चख मिळ बिहं हुवौ चख-चड़बौ ।
जोम अथाग जाग उर जुड़बौ ॥ ५०. कवेसर-कवीश्वर । ५१. प्राद-आदि, प्रथम । अट्ठार-अठारह। मत-मात्रा । अवर-अपर, अन्य। जिण
जिस । मुण-कह । ५२. धंधींगर-हाथी । आवळा-विकट । धरतौ-चरण रखता हुा । झड़-छोटी-छोटी बूंदकी
निरंतर होने वाली वर्षा । जेम-जैसे । झरतौ-टपकता हुआ, श्रवता हुआ । सुजवह । सरतौ (सरिता)-नदी। करणी-हथनी। जूथ-यूथ, झुण्ड । करतौ-करता हुआ। मैंगळ-हाथी । सहत-सहित । उनमत-उन्मत्त, मस्त । आब-जल । हिलोळविलोड़ित कर । चोळ-क्रीड़ा। अतरै-इतनेमें । धूम-कोलाहल । चख (चक्षु)-नेत्र । आग-अग्नि । धकतर-प्रज्वलित होते हैं। जाजुळ-भयंकर । जतरै-जितने में । बिहूंदोनों। चख-चड़बौ-कोपसे लाल नेत्र । जोम-जोश, आवेग । अथाग-अपार । जुड़बौभिड़ना, टक्कर लेना।
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