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१६. ]
रघुवरजसप्रकास बिहं वां नह सूधौ बाहुड़बौ । भारथ हुवौ ग्राह गज भड़बौ ॥ कर प्रब सहंस बरस भारथको । जोर टूट बीछड़बौ जुथकौ ॥ सुज बळ बध जळ ग्राह समथको । थळचारी जिण हं गज विथको ॥ चौवळ ग्राह तंत गज चरणां । जकड़ डबोवण खंच जबरणां ॥ बे आंगुळ जळ संड उबरणा । करी करी हरिहं ता करणा ॥ दीन पुकार स्रवण सुण हसती । तज कमळा पाळा करत सती ॥ आतुर चक ग्राह हण असती । हरि ग्रह हाथ तारियौ हसती ॥ असरण दीन दुखित ऊपररौ । धू धारण झेलौ गिरधररौ ॥ कीजंतां ऊपर निज कररौ । विरद हुवौं जुग जुग रघुबररौ ॥ ५२
५२. बिहुवां-दोनों। सूधौ-सीधा। बाहुड़बौ-वापिस मुड़ना, वापिस पाना या होना । भारथ
युद्ध । भड़बौ-टक्कर, टक्कर लेना। प्रब- पर्व । बीछड़बौ-दूर होना। जुथ (यूथ)झुण्ड । समथ-समर्थ । थळ चारी-स्थलचारी । जिण-जिस । हूं-से । विथको-व्यथापूर्ण, पीडित, दुखी। चौवळ-चारों ओर । तंत-तंतु। जकड़-बांध कर । डबोवणडुबानेको। खंच-खींच कर । जबरणां-जबरदस्तीसे, बलात् । बे (द्व)-दो। प्रांगुळउंगली। उबरणा-बची। करी-हाथी। करी-की। हरिहूंता-ईश्वरसे । करणा (करुणा)-आर्त, पुकार । दीन-पात, करुणापूर्ण । स्रवण-कान । हसती-हाथीकी । कमळा-लक्ष्मी। पाळा-पैदल । अातुर-तेज। हण-मार कर। असती-दुष्ट । धू-धारण-निश्चय । झेलौ-सहारा, मदद ।
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