________________
रघुवरजसप्रकास जाता संख छप्पै उदाहरण हास्यरस सगर सुतण जिग करत, अगत हकनाहक दीनी। वर करतां सुपनखा, कान नासा विण कीनी ॥ जाचतां निज रूप, कियौ नारद मुख बंदर । त्यागी सौळ हजार, घाल कुबज्या धर अंदर ॥ कैळासे नरग उधार कीय, अजामेळ उतावळां । आदेस करै 'किसनौ' अनंत, राघव कौतक रावळां ।। २२१
__ अथ वळता संख छप्पै लछण
वदीस तुक पाछी वळे, पर लाटानुप्रास । · वळता संख वखांणजे, सकौ कवित सर रास ॥ २२२
अरथ पैली कही सौ तुक फेर पाछी कहै, लाटानुप्रास अलंकार ज्यू तथा सीह चला गीत ज्यूं सौ वळता संख कवित तुकां पाछी वळ जींसू ।
अथ वळता संख उदाहरण
कवित छप्पै जिण भजियौ जगदीस, जिको जमहं त न भजियौ। नह तजियौ रघुनाथ, तेण मृत जांमण तजियौ । निज लीधौ हरि नाम, जिकण जम नाम न लीधौ ।
तिण नंह अम्रत त्रखा, राम नामांम्रित पीधौ ॥ २२१. सुतण-सुत, पुत्र । जिग-यज्ञ । अगत-अधोगति । हकनाहक-व्यर्थ। दीनी-दी। वर
पति । नासा-नाक। विण-बिना, रहित । कीनी-की। केळा-क्रीड़ा, खेल । नरगनरक । ऊतावळा-शीघ्रता करने वालों । प्रादेस-नमस्कार । अनंत-विष्ण, ईश्वर ।
कौतक-कौतुक, खेल, क्रीड़ा । रावळा-आपके । २२२. वदीस-कही जाती । वळे-फिर । वखांणज-वर्णन कीजिये। सकौ-वह । ज्यूं-जैसे ।
जीतूं-जिससे । २२३. जिण-जिस । भजियौ-भजन किया, स्मरण किया। जिकौ-वह। जमहंत-यमराजसे ।
भजियो-भागा । म्रत-मत्यु । जांमण-जन्म । लीधौ-लिया। जिकण-जिसका। त्रखातषा, प्यास । नामांम्रित-नाम रूपी अमृत । पीधौ-पिया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org