SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रघुवरजसप्रकास [ ६५ अथ समवळ विधांन छप्पै मात्रा वरण लछण दूहौ आद अंत छप्पय नगण, गुरु पनरहै उगुणीस । यक सौ सैंतीसह अखर, बद लघु सौ बावीस ॥ २१७ अरथ छ ही चरणके आद अंत नगण आवै, एकसौ सैंतीस सरब अखिर । पनरै गुरु अखिर होवै, लघु अखिर एकसौ बावीस होवै अर उपमे उपमांनको सम भाव वरणै सौ समवळ विधांन कवित छप्पै । दहौ जिणमें समता वरणजै, उपमे अर उपमांन । जांणौ छप्पै अह जपे, सौ सम वळह विधांन ॥ २१८ ____ समबल विधांन छप्पै उदाहरण नयण कंज सम निपट, सुभग आणण हिमकर सम। जप सम ‘ग्रीवह' जळज, तवत सम हीर डसण तिम ॥ अधर ब्यंब सम अरुण, समह भुज नागरौ ज सख । सिल समांन उर समर, अथघ सम स्यंध उदर अख ॥ कह सम मयंद अतछीण कट, जयत खंभ रिण सुपय जिम । समवळ विधांन खटपद 'किसन', सुज राघव रवि कोट सम ॥२१६ जाता संख लछरण दहौ रस स्यंगार य हासरस, बिच जिण कवित बरखांण । जाता संख जिणानं कहै, वरणव राम वखांण ॥ २२० २१७ उगणीस-उन्नीस। २१८. समता-समानता, सादृश्य । उपमे-उपमेय, जिसकी उपमा दी जाय, वर्णनीय । उपमांन-वह पदार्थ जिससे किसी दूसरे पदार्थको उपमा दी जाय। अह-शेषनाग । २१६. कंज-कमल। सम-समान । निपट-अत्यन्त । सुभग-सुंदर । प्रांगण-ग्रानन, मुख । हिमकर-चंद्रमा। जळज-शंख । हीर-हीरा । डसण-दाँत । अधर-अोष्ट । ब्यंबबिब । अरुण-लाल । समह-समान । नागरौ-हाथीका। समर-युद्ध । अथघ-अपार । स्यंध-सिंधु । मयंद-सिंह। छोण-क्षीण। कट- कटि, कमर । खंभ-स्तंभ । सुपय चरण, पैर । खटपद-छप्पय । २२०. स्यंगार-शृंगार । हास रस-हास्यरस । वखांण-वर्णन । वरणव-वर्णन कर। वखांण यश, कीर्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www. www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy