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________________ रघुवरजसप्रकास [ १०३. अथ चौपई नाम छप्पै लद्रण बीस बीस चोपद बरण, दोय बीस दो पाय । चोप किवत जिण चोपसुं, रटीयौ पनंगांराय ॥ २४० अथ चौपई छप्पै उदाहरण चोप अरच हरि चरण, चोप फिर रे परदछण । चोप करे करजोड़, जनम सरजत आगळ जण ।। चोप करे चित बीच, नाम सिर अगर सु नर हर। चंनण घस जुत चोप, कमळ त्यं तिलक चोप कर ॥ अत चोप भजन सी-वर उचर, ध्यान हृदय जुत चोप धर । कवि चहै चोप रघुराजको, कर कर चोप स भजन कर ॥२४१ अथ मुकताग्रह नाम छप्पै लछण दूही आद अंत तुकरै झमक, अरथ अवर उर आंण । गंथ मुकत जिम छपय गत, मुगता ग्रह परमाण ॥ २४२ अथ मुकताग्रह कवित उदाहरण भव ब्रहमा जिण भजै, भजै तिण नांम पाप भर। भर टाळण सह भूम, भूम-पतनको जेण सर ॥ सर धनुं धार समाथ, माथ दस भंज समर मह । २४०. चोपद- चार पद या चरण। बरण-अक्षर । पाय-चरण । चोप-बुद्धि, चतुराई, दक्षता। पनंगांराय-शेषनाग । २४१. अरच-पूजा कर । परदछण-प्रदक्षिणा । जनम सरजत-जो जन्म देता है, जन्म रचता है। प्रागळ-अगाड़ी। जण-जिस । चोप-ध्यान । कमळ-शिर, मस्तक । सी-वर सीतावर, श्री रामचन्द्र । उचर-उच्चारण कर, भजन कर । चोप-कृपा, दया । २४२. झमक-यमकानुप्रास । गूंथ-रच, बना । मुकत-मोती। २४३. भव-महादेव शिव । व्राहम-ब्रह्मा । भर-भार. बोझ । भम-भमि । भमपत-भमिपति । सर-बारण, तीर । धनु-धनुष । समाथ-समर्थ । माथ-मस्तक, सिर । समर-युद्ध । मह-में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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