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________________ १०२ ] रघुवरजसप्रकास अथ निसरणीबंध छप्पै कवित उदाहरण एक रमा अह निसा, दोय रवि चंद त्रिगुण दख । च्यार वेद तत पंच, सुरत छह सपत सिंध सख । आठ कुळाचळ अनड़, नाग नव नाथ निरंतर । दस दिगपाळ दुबाह, रुद्रह एकदस सर तर ।। सझ सझ उमंग बारह सघण, बिसुध चित्त कायक बयण । तेरहा भांण पय रांमतौ, भल सेवै चवदह भुयण ॥२३७ अथ नाट नाम छप्पै लछण नाट सबद जिण कवितमें, आद अंत लग होय । नाट नाम तिणनं कहै, सुकव महा-मत सोय ॥ २३८ अथ नाट छप्पै उदाहरण लाभ नहीं अहलोक, नहीं परलोकह निरभय । सुमति नहीं ज्यां स्यांन, खांत ज्यां नहीं पाप खय ॥ जीवण सुख नहिं जिकां, नहीं ज्यां मुवां मुकत निज। नहीं जिके नहच्यंत, कदे ज्यां नहीं सरै कज ॥ निकलिंक बांण ज्यांरी नहीं, दसा नहीं सुभ ज्यां दपै । ज्यां नहीं सफळ मनखा जनम, जिके नहीं रघुबर जपै ॥ २३६ २३७. अहनिसा-रात-दिन । रवि-सूर्य। चंद-चंद्र । दख-वह। तत-तत्त्व । पंच-पांच । सपत-सात । सिंध-समुद्र । कुळाचळ-पाठ पर्वतोंका समूह, मतांतरसे सात पर्वतोंका समूह, कुलपर्वत । अनड़-पर्वत । दिगपाळ-दिकपाल । दुबाह-महान, दृढ़ । उमंग-तरंग, इच्छा । सघण-घन, बादल । पय-चरण । मल-ठीक, श्रेष्ठ । भुयण-भवन । २३८. नाट-नहीं, नहीं अर्थका शब्द । महा-मत-महामतिवान । सोय-वह । २३६. अहलोक-इह लौक, इस संसार में । सुमति-श्रेष्ठ मति । स्यांन-बुद्धि । खांत-विचार । ज्यां-जिन । खय-नाश । मुकत-मुक्ति, मोक्ष । नहच्यंत-निश्चित । कज-काम । दषैशोभायमान होती है। मनखा जनम-मनुष्य जन्म । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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