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रघुवरजसप्रकास
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अथ अहिंगत जथा उदाहरण
साणौर गीत सिव देवां इंद्र सिध सिध राजां , है ग्रह रिव, रिवचो है राज । तरसुर सरित गंग तरराजं , राजां सह सरहर रघुराज ॥ कनक करग धातां हिम करगां , रति-पति गरुड़ खगां सारूप । दधां विधाता दुजां खीर-दध , भूपां सिधां जांनुकी भूप ॥ गिरां हण रुद्रां सोवनगिर गाथां रुघ वेदां हरि गाथ । कोटां गणं गजानन लंका , नपां सिरोमण सीतानाथ ।। भारथ लखण सेस अह भायां , सुकवि दुति धारां सुकवियां डुडंद । लिछमीवर भगतां ध लायक , नायक जगत दासरथ नंद ॥ २७
वारता छठी आद जथा कहावै सौ पहलरा दवाळामें कहै सौ सारा दवाळामें कहणौ जिण जायगां थांणा-बंध वेलियौ रूपग गीत वणै सौ इण रूपग माहै अगाड़ी जांगड़ौ प्रहास थांणा-बंध वेलियौ गीत छै सौ देख लीज्यौ । सात सांणौरां महै छ। २७. तरसुर-कल्प-वृक्ष । सरित (सरिता)-नदी। गंग-गंगा नदी। कनक-सोना, स्वर्ण।
धाता-धातुओंमें । हिम-स्वर्ण, सोना। रति-पति-कामदेव । दयां (उदधियों)-समुद्रों। विधाता-ब्रह्मा। दुजां (द्विजों)-ब्राह्मणों। खीर-दध (क्षीर उदधि)-क्षीर-समुद्र । गिरां (गिरियों)-पर्वतों। हणू-हनुमान । सोवनगिर-स्वर्णगिरि, सुमेरु पर्वत । गाथाकथाओं। रघ-ऋग्वेद । गाथ-कथा । सिरोमण-शिरोमणि । दुडंद-सूर्य, भानु । दवाळा-गीत छंदके चार चारणोंका समूह । जायगां-जगह, स्थान ।
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