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________________ १७६ ] रघुवरजसप्रकास अथ पाद जथा उदाहरण थांणबंध वेलियौ गीतरौ दूहौ छै गीत सरण वखांणे जगत चित विखाणे जेम सिंध , मौज किव वखाणे चंदनांमा । बुध गिरा राम हथवाह रिम वखाणे , वखांणे काछदृढ़पणौ बांमा ॥ २८ वारता सातमी अंत नामा जथा कहावै, जठ चौटीबंध रूपग वणै । जौ रूपग सारामें वरणन करै सौ अंतरा दवाळामें कहणौ, सौ इण ग्रंथरै पाद बावीस कवितां मध्ये चौटीबंध कवित छै सौ देख लीज्यौ, यूंही गीत जांणज्यौ । अथ अंत जथा उदाहरण चौटीबंध छप्पै सूरजपणौ सतेज, स्रवण यम्रत हिमकर सम ॥ २६ वारता पाठमी सुध नांमा जथा कहावै, सौ जठै रूपगरी एक राह निभै, पैहला दूहारी पैहली तुक में भाव सौ च्यार ही दूहारी पैहली तुकमें भाव। पैल्हारी दूजी तुकमें भाव सौ सारा दूहांरी दूजी तुक में भाव । पैलारी तीजी तुकमें भाव सौ सारा दूहांरी तीजी तुकमें भाव। पैलारी चौथी तुकमें भाव सौही दूजा दुहारी चौथी तुकमें भाव होय सौ सुध जथा कहावै सौ यण रूपगमें आगै घौड़ादमौ गीत छै सौ देख लीज्यौ। २८. दूहौ-गीत छंदके चार चरणका समूह। वखांण-वर्णन करते हैं। प्रशंसा करते हैं। सिंध-(सिंधु) समुद्र। मौज-उदारता। चंदनांमा-यश, कीर्ति । बुध-पंडित । गिरावाणी। हथवाह-हाथसे किया जाने वाला शस्त्र-प्रहार । रिम-शत्र । काछ- द्रढ पणी जितेन्द्रियता। संयमशीलता। बांमा-स्त्री। यूंही-ऐसे ही। २६. स्रवण-श्रवण । यम्रत-अमृत । हिमकर-चंद्रमा। सम-समान । जठ-जहां । रूपग गीत छंद, काव्य । कहावै-कही जाती है। यण-इस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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