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________________ रघुवरजसप्रकास । १७७ अथ सुद्ध जथा उदाहरण __घोड़ादमी गीत राघव गह पला कीर कह पै रज , सिला उडी जाणे जुग सारौ । जीवन जगत कुटंब दिस जोवौ , पग धोवौ तौ नाव पधारौ ॥ ३० वारता नवमी अधिक नामा जथा कहावै, जठे रूपगमें अधिकासुंअधिकौ वरणण होवै, एक तौ फलांणातूं फलांणी अधिकौ यूं होय हर दूजी गणना क्रमसू होय । एक दोय तीन च्यार पांच इत्यादिक क्रमसूं दो भांतकी अधिक जथा। अथ अधिक जथा उदाहरण सोरठौ रट नर अधिका राज, राजां अधिका सुर रटै । सुरां अधिक सुर राज, अवधेसर सुरपत अधिक ॥ ३१ वारता दूजी यण ग्रंथरा बावोस छप्पै मध्ये नोस रणीबंध नाम छै. छप्पैमें देख लीज्यौ, अधिक क्रम छै सौ देख लोज्यौ । नीसरणीबंध छप्पै कवित्त एक रमा अह निसा, दोय रवि चंद त्रिगुण दख । च्यार वेद तत पंच, सुरत छह सपत सिंध सख ॥ ३२ ३०. गह-पकड़ कर। पला-अंचल । कीर-धीवर, नाविक। प-चरण । जग-संसार । सारौ-समस्त । दिस-तरफ। अधिकासू अधिकौ-अत्यधिक । अधिकौ-अधिक । यूं-ऐसे । ३१. राज-राजा। सुर-देवता। सुरराज-इन्द्र । अवधेसर-श्री रामचंद्र महाराज । सुरपत-इन्द्र । यण-इस । ३२. सपत-सप्त, सात । सिंध-(सिंधु) समुद्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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