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________________ १७८ ] रघुवरजसप्रकास इत्यादिक प्रधिक जथा दुविधि वारता दसमी सम नांमा जथा कहावै, जिण महै प्रभेद सम रूपग वर, तथा सविसय सावयव रूपकालंकार वरण, तथा वागेटौ, जागेटौ, नागेटौ, वादेटौ, रूपग गीत वरर्णं सौ सम जथा कहावै । इण उदाहरणरा दूहा माफक गीत कवि नीसांणी छंद जांण लीज्यौ । अथ सम जथा उदाहरण दूह अवधि गगन बाजी यण, सयण कुमुद सुख साज । जस कर सिय रोहिणी जुकत, रामचंद्र महराज ॥ ३३ वारता अधिक न्यून ही छै । स्त्री रामचंद्रजीने हर चंद्रमाने समान वरण्या छै, सूं सम जथा जांणज्यौ | वारता अग्यारमी न्यून नांमा जथा कहावै, सौ प्रागै सुध नांमा आठमी जथा कही जींनै क्रम भंग कर अस्तव्यस्त कर कहणी सौ न्यून जथा जांणज्यो । पण रूपग मध्ये घड़उथल्ल नांमा गीत है । पैल्हा दूहारी पैली दोय तुकांरौ धरम तौ तीन दूहांमें नहीं छै, हर पाछला दूहांरौ धरम ग्रागला दूहांमें नहीं जींसूं क्रम भंग छं । अस्तव्यस्त पद छै जींसूं न्यूंन जथा छै । Jain Education International अथ न्यून जथा उदाहरण घड़उथल्ल गीत जम लग कठै भै सीस जियां, तन दासरथी नित वास तियां । तन दासरथी नह वास तियां " जम लगसी माथै जोर जियां ॥ ३४ इति ग्यारह जथा संपूरण २३. जिण - जिस । मह में । प्रभेदसमरूपग - प्रभेदसम रूपकालंकार | सावयव रूपकालंकाररूपकालंकारका एक भेद विशेष । ३३. सयण - सज्जन । सिय-सीता । जुकत-युक्त । हर और ३४. कठ-कहां । भै- डर, भय । माथ ऊपर । जियां जिनके । For Private & Personal Use Only जींस - जिससे । www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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