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रघुवरजसप्रकास
[ १७६ प्रथ गीतांका एकादस दोख निरूपण
छप्पै कवित्त उकतसु सनमुख आदि निभै नह जिकौ अंध १ । निज वरणै भाख विरोध सही छबकाळ दोख सुज २ ॥ नह व्है जात पित नाम हीण दोखण सौ कहिये ३ । वरण होय विसुध निनंग दोखण ते नहिये ४ ॥ पद छंद भंग सौ पांगळौ ५ अधिक ओछ कळ ऊचरै । वेलिया खुड़द विच जांगड़ौ वणै सजात विरुद्ध रे ६ ॥ अरथ होय आमं झ अपस ७ सौ दोख उचारत । जथा निभै नह जेण नाळछेदक निरधारत ।। तिकौ दोख पख तूट जोड़ कच्ची जिण मांझळ । सुभ आखर मुड़ असुभ लखावै वधिर १० जिकौ वळ ॥ यक आद अंत वाळौ अखिर करै अमंगळ सोमकर । अगीयार दोख कवि आखिया से निवार रूपग ऊचर ॥ ३५ अथ अंधादिक एकादस दोख उदाहरण कथन
छप्पै कवित्त कहियौ मैं के कहं किसं अंधौ तैं कहियौ । लिता पान धनंख राम छबकाळौ लहियौ ॥ अज अजेव जग ईस निमौ तैं हीण दोख निज । रत नदीतरत कवंध सार इम चली निनंग सुज ॥
३५. निर्भ-निभता है। जिको-बह । अंध-एक साहित्यिक दोषका नाम। भाख-भाषा।
छबकाळ-एक साहित्यिक दोषका नाम। सुज-वह। पित-पिता। हीण दोखण-एक साहित्यिक दोषका नाम । निनंग-एक साहित्यिक दोषका नाम । पांगळौ-एक साहित्यिक दोषका नाम । प्रोछ-कम । कळ-मात्रा। प्रामझ-वह जो कठिनतासे समझमें आवे। अपस-एक साहित्यिक दोषका नाम । नाळ छेदक-एक साहित्यिक दोषका नाम । तिकौ-वह । पखतूट-एक साहित्यिक दोषका नाम । जोड़-काव्यरचना। मांझळ-मध्यमें। वधिर-एक साहित्यिक दोषका नाम । वळ-फिर ।
अमंगळ-एक साहित्यिक दोषका नाम । ३६. छबकाळी-छबकाळ, दोषका एक नाम ।
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