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________________ १७४ ] रघुवरजसप्रकास अथ सिर नामा जथा उदाहरण सुद्ध सांणौर सतसर गीत अडग तेज अणथघ सरद, ध्यान स्रुत आसती , नीम वर कार कळ जोग तप नाम । थिर प्रभा नीर पय यंद बुध नीत थट , मेर रिव समंद चंद भव भ्रहम राम ॥ २४ अथ चौथी वरण नाम जथा कहावै । वारता चौथी वरण नाम जथा कहावै, जिण महै नखसू लगाय सिख ताई, तथा सिखसूं लगाय नख तांई वरणण होवै सौ यण ग्रंथ मधे बावीस जातरा छप्पै वरण्या जठे एक तौ समवळ विधांन छप्प देख लीज्यौ। दूजौ बावीस छप्पैमें स्त्री प्रतें विधांनीक छप्पै । अथ वरण जथा उदाहरण समवल विधांन छप्पै नयणकंज सम निपट, सुभत आंनन हिमकर सम ॥ २५ ____ इत्यादि दुतीय विधांनीक छप्पै तुक सेस इंदु म्रग दीप, जांण कोकिल मृगपति गज । बेणि बदन चख नाक, बोल कटि जंघ चाल सज ॥ २६ वारता पांचमी अहिगत नाम जथा कहवै, जिण गीतरी आदरी तुकरा आदमें जो पदारथ कहै, जिणरौ संबंध तुकरा अंतमें नीसरै वचै और वात वरणै सापरीगत ज्यू रूपगरा वरणणरी वक्रगति होय सौ अहिगत नाम जथा कहावै । २४. अडग-न डिगने वाला, अटल । प्रणयघ-जिसका थाह न हो, अपार । स्रत (श्रुति) वेद । श्रासती-आस्तिकत्व । कार-मर्यादा, सीमा। कळ-कला (चंद्रकला)। जोगयोग। तप-तपस्या। थिर-स्थिर । प्रभा-कांति । पय-समुद्र। यंद-इन्द्र । बुधबुद्धि । नीत-नीति । थट-है। मेर-सुमेरु पर्वत । रिव-सूर्य । समंद-समुद्र । भव महादेव । भ्रहम-ब्रह्मा । नोट-सिर जथाके उदाहरणका गीत सतसर अगाड़ी मय अर्थके दिया गया है, उसे पढ़ कर पाठक समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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