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रघुवरजसप्रकास
[१८१ बिना ठिकांण विकळ वरणण होय सौ निनंग दोख तथा नग्न दोख । पैली कहवारी वात "छे बरणे, पछै वरणवारी वात पैहली वरण सौ विकळ वरणण वाजै ज्यूं अठै रत नद तिरत कबंध सार इम चली। पैहली तरवार चालै जद लोही प्रावै, जद नदी वहै, अठै पैहलो लोहीरी नदी वरणी, फिर कबंध वरण्या, जठा पछै तरवार चली कहो, ठिकांणाचूक वरणण छै, जींसू निनंग दोख हुवौ । ४
छंद भागै सौ छंदभंग, पांगुळौ दोख कहावै। तुक कवि छंदोभंग कह, इण तुकमें एक मात्रा घाट छै । गगा कका विच ससौ चाहीजै, छप्पैरी नवमी तुकरै तथा पांचमी तुकरै पूरबारधमें पनरै मात्रा चाहीजै सौ अठ चवदै मात्रा छ । एक मात्रा कम छै । छंद भागौ जींसू छंदभंग पांगळी दोख हुवौ । ५ ___ जात विरोध सौ लघु सांणौर मही गीत ४ वेलियौ सुहणौ खुड़द भेद भेळा होवै पिण जांगड़ौ भळी न हुवै। जांगड़ारौ दूहौ वणे सौ जात विरोध (दोख) हुवौ । ६ ___ जठे अमूझ्यौ अरथ होय दस्टकूट गूढा ज्यूं क्लिस्टारथ ज्यूं महाकस्टसू अरथ होय सौ अपस दोख कहावें ज्यूं विस्ण नाम कुळ विरण विस्ण सुत मित्र । इति विस्ण को नाम हरीनै हरी नाम सूरजको जींसू सूरजका वंसका रामचंद्र सूरज छ । फेर विस्ण को हरी नाम नै हरी नाम सूरजको जींसू सूरजका सुत सुग्रीवका मित्र स्त्री रामचंद्र इसी तरै महा कस्टसू अरथ होय सौ अपस दोख कहावै । ७ ।।
जी रूपगमें विधांनीक अादि नव जथा नहीं निभै सौ नाळ छेद नाम दोख कहावै, कच अहि मुख ससि स्यंघ लंक कुच कोक नाळ छिद, चोटी कही मुख कह्यौ कमर कही नै पछै कुच कह्या, जींसू क्रम भंग हुवौ, चौथी वरण नामा जथा जठै सिख नखकै वरणण होय सौं अठ निभी नहीं । जींसू नाळ छेद दोख हुवौ। ८
जिण रूपगमें पतळी जोड़ होय सौ पख तूट दोख कहावै, मनख्या मत विललाय गाय प्रभूजी पख तूटल । अरथ मनख्या पद कची जोड़ ग्रांमीण विलोवड़ी, विललाय चौपद। गायक चौपद प्रभूजी प्रभूपद ठीक पिण जीकारासू यौ पण कचौ । इसी कची पतळी जोड़ जी रूपगमें होय सौ पख तूट दोख कहावै । ६
३. मुदौ-ज्ञान । दोयांई-दोनों ही । ४. ठिकाणौ-स्थान । ५. घाट-कम ।
अमनौरथ-कविता या गद्यका वह अर्थ जो आसानीसे समझमें न पा सके,
दृष्ट कट अर्थ । द्रस्टकूट-दृष्टकूट । क्लिस्टारथ-क्लिष्टार्थ । ८. जी-जिस । रूपग-गीत छंद या काव्य ।
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