SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ ] रघुवरजसप्रकास सुभवायक है, सौ मुड़ नै पाछौ असुभ मालम हुवै सौ बहरौ दोख कहावै। रांमण हणियौ राम, गृह खाधौ तारक खळ, हणियौ पद राम रावण सब्द विचै छै सौ दुवांसू अरथ लागै छै, राम हणै या रामण हणै। राम रांमणनै हण्यौ कै रामण रांमनै हण्यौ, निरधार नहीं, तारकासुर दैतनै, गह नाम स्वामी कारतिकरौ छै सौ तारक खळ दुस्टनै स्वामी कारतिक खाधौ । जुधमें विनास कियौ अरथ छै, जीको सुभपणी मुडै नै असुभ अरथ मालम होवै छै। गूह खाधौ इसौ ग्लांण सब्दारथ असुभ भासै छ जींसू बहरौ दोख छै, तथा कोई कवि सींगमंड पिण इण दोखनै कहै छै । १० ___ रूपगरी पादरी तुकरौ आद अखिर नै रूपगसू पूरण होय जिण अंतरी तुकरौ अंतरौ अखिर मिळायां असुभ अरथ प्रगटै सौ अमंगळ दोख कहावै छै। ज्यूं महपतमें पय राम रै। अण तुकरौ आदरौ मकार अंतरौ रैकार भेळा कियां मरै । यसौ असुभ सब्द भासै छै जिणसूं अमंगळ नांम दोख हुवौ । ११ इति एकादस प्रकार दोख संपूरण । अथ नीसांणी त्रिविधि वैण सगाई नाम लछण उदाहरण दही वयण सगाई तीन विधि, आद मध्य तुक अंत । मध्य मेल हरि मह महण, तारण दास अनंत ॥ ३८ वारता दूहारी पैहलीरी दोय तुकांमें तुकरा प्राद अखिररौ तुकंतरा आद अखिरसू संबंध जिणसूं वैण सगाई हुई ।१। सौ यधक कहीजै । दुहारी तीजी तुकमें मध्य मेळ वयण सगाई हुई सौ समवैण सगाई ।२। दुहारी चौथी तुकमें अंत वयण सगाई, सौ न्यून वैण सगाई ।३। प्रादरौ अखिर तुकंतरा अखिर हेठे पावै सौ तौ उतिम वैण सगाई ।१। आदरौ अखिर तुकंतरा दोय अखिरां हेठे पावै सौ मध्यम वैण सगाई हुवै ।२। अादरौ अखिर तुकंतरा तीन अख्यरां नीचे आवे सौ मध्यम वैण सगाई हुई ।३। नै आदरौ अखिर तुकंतरा च्यार अखि रां हेठे प्रावै सौ अधमाधम वैण सगाई कहीजै ।४। अठा सवाय सौ निकमी सिथळ वयण छ । १०. दुवां-दोनों। हण्यो-मारा, संहार किया। खाधौ-भक्षण किया, ध्वंश किया। निरधार निश्चय। ग्लांण-ग्लानी। ३८. महमहण (विष्णु)-ईश्वर । यधक-अधिक 1 अखिर-अक्षर । हेठ-नीचे। उतिम उत्तम, श्रेष्ठ। वयण-वर्ण मैत्री, वयण सगाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.i
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy