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रघुवरजसप्रकास छंद नव उक्ति नाम
कवित्त छप्पै सनमुख पहली सुद्ध १ दुई गरभित सनमुख दख २ । परममुख सुद्ध प्रसिद्ध ३ अनै गरभित परमुख अख ४ ॥ सुद्ध परामुख सरस ५ परामुख गरभित होई ६। सुद्ध स्त्रीमुख सातमी ७ सुकवि स्त्रीमुख संजोई ८॥ उचरजै नमी मिस्रित उकति : पलट पयण दवाळ प्रति । रघुनाथ सुजस गावण रहस, अखी 'किसन' नव विध उकत॥ ६
वारता
कैहवा-वाळा प्रसंगीरै सनमुख कवि कहै सौ सुद्ध सनमुख उक्ति कहावै ।
अथ सुद्ध सनमुख उक्ति उदाहरण
दूहौ दससिर खळ मारण दुसह, हाथी तारण हाथ । क्रपा रूप 'किसनौ' कहै, निमौ भूप रघुनाथ ॥ १०
वारता सनमुख अन्योक्ति कर कहणौ सौ गरभित सनमुख उक्ति कहावै, और ऊपरै कहे नै आपरा मननै समझावजै सौ गरभित सनमुख उक्ति कहावै ।
अथ गरभित मनमुख उक्ति उदाहरण
उचरै श्राळ-जंजाळ अ, व्रथा करै बकवाद । निज मन 'किसना' अहनिसा, अवधेसर कर याद ॥ ११
8. दुई-द्वितीय, दूसरी । अन-और। प्रख-कह। उचर-कहिए। वयण-वचन ।
दवाळ-डिंगल गीतका चार चरणका समूह। रहस-रहस्य। अखी-कही। कहवा-वाला
कहने वाला। प्रसंगी-वह जिसके विषयमें प्रसंग चले, सम्बन्धी।। १०. वससिर-रावण । खळ-रक्षस । दुसह-महा भयंकर । उचरै-कहता है, वर्णन करता
है। प्राळ-जंजाळ-व्यर्थका बवंडर। अहनिसा-रात दिन । अवधेसर-श्रीरामचंद्र भगवान ।
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