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रघुवरजसप्रकास
[ १६६ दूही साठ सहस सुत सगररा, नहचै मुवा निकांम । तै धन ग्रीध जटाय तं , रिण रहियौ छळ रांम ॥ १२
वारता जींनै रूपग कहै जींसू अपूठौ कहीजै सौ सुद्ध पर मुख उक्ति कहावै, औररौ जस और प्रतसूं भाखण करणौ सौ सुद्ध परमुख उक्ति ।
अथ सुध परमुख उक्ति उदाहरण
सोरठौ जीपे दस सिर जंग, समंदां लग दीपै सुजस । ऊ रघुनाथ अभंग, जन पाळग समराथ जग ॥१३
वारता परमुख उक्तिनै अन्योक्तिरी कर कहणौ सौ गरभित परमुख उक्ति कहावै ।
अथ गरभित परमुख उक्ति उदाहरण
दूहा हर समरौ होसी हरी, जीते जमरौ जंग । कर उदिम रोलंब करै, भमरौ कीटी भ्रग ॥ १४ जिणनं जांण अजांणरौ, ईखौ भेद अभंग । लाठी खर ऊपर लगत, पूजै जगत पमंग ॥ १५
वारता कवि विना वरणनीय नै पैलौ पैलानै कहै सौ सुद्ध परामुख उक्ति कहावै। १२. नहचै-निश्चय । निकांम-व्यर्थ । रिण--युद्ध । छळ-लिए। जीन-जिसको । रूपग
गीत छंद । जींसू-जिससे । अपूठौ-उलटा । प्रौर-अन्य, दूसरा। प्रत-प्रति, लिए ।
भाखण-भाषण। १३. जीपे-जीत कर। दससिर-रावण। जंग-युद्ध । लग-पर्यन्त, तक। दीप-शोभा
देता है। पाळग-पालन करने वाला। समराथ-समर्थ । १४. जंग-युद्ध । उदिम-उद्यम, उद्योग। रोलंब-भौंरा। भमरौ-भौंरा। कोटी-छोटा
कीटाणु । भ्रंग-भौंरा । १५. जिणन-जिसको। अजांणरौ-अज्ञानका । ईखौ-देखो। खर-गधा। पमंग-घोड़ा।
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