________________
१७० ]
रघुवरजसप्रकास
अथ सुद्ध परामुख उक्ति उदाहरण
दूहौ समपी लंका सोवनी, दीन भभीखण दांन । जेण रांम उज्जळ सुजस, जपै सकळ जिहांन ॥ १६
वारता
सकळ नाम सिवरौ है सौ सिवप्रत पारबती बचन छ । पैलौ पैलाने कहै सौ परामुख उक्त जिण राम सौ परमुख उक्त अदभुतरस, पारबतीरौ बयण सौ परामुख उक्त नै सिवप्रत संभाखण ।
वारता परामुखमें सनमुखरी छाया नीसरै सौ गरभित परामुख उक्ति कहावै । ___ अथ गरभित परामुख उक्ति उदाहरण
दूहो हर जैरै कच-कूप मह, वसै कौड़ ब्रहमंड । केम प्रभू मावै तिके, परगट कीड़ी पिंड ॥ १७
वारता सातमी सुद्ध स्रीमुख नाम उक्ति जठै परमेस्वरको वचन तथा कोई देवताकौ, तथा राजाको वचन तथा नाग वचन, सौ सारा रूपगमें एक निव है सौ सुद्ध स्त्रीमुख उक्ति कहावै ।
अथ सुद्ध स्रीमुख उक्ति उदाहरण
हौ हे पाखं नय वयण हिक, सांभळ भरथ सुजाण । करणौ तौ मौ अवस कर, पितचौ हकम प्रमाण ॥ १८
१६. समपी-दी। सोवनी-स्वर्णकी। दीन-गरीब । भभीखण-विभीषण । सकळ-समस्त,
सब अथवा महादेव, शिव । जेहांन-संसार । पैलौ-पहिला या दूसरा। प्रत-प्रति ।
संभाखण-संभाषण । १७. हर (हरि)-विष्णु । जैर-जिसके। कच-कूप-रोम-कृप, रोम-छिद्र । मह-में । - ब्रहमंड-ब्रह्मांड । केम-कैसे । तिके-के। परगट-प्रकट । पिंड-शरीर । १८. हं-मैं। पाखं-कहता हूँ। नय-नीति । वयण-वचन। हिक-एक । सांभळ-सन ।
भरथ-भरत । सुजाण-चतुर । पितचौ-पिताका ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org