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________________ रघुवरजसप्रकास [ १७१ वारता आठमी कवि-कल्पित स्रीमुख उक्ति कहावै, जिणमें कवियण नै स्रीमुखरौ वयण दोनई नीसरै। वारता ___स्रीरांमजीरौ बचन लछमणप्रतिनै यूं कहियौ-अवधेस कवियण दोनूं भेळा छै। अथ कवि कल्पित स्रीमुख उक्ति उदाहरण कोपै तं मौ राज कज, सांभळ वायक सेस । गरवां मत ग्रहियो नहीं, यं कहियौ अवधेस ॥ १६ वारता नवमी मिस्रत उक्ति जठ गीत कवित्त छंदादिकमें तुक-तुक प्रति तथा दवाळा दवाळा प्रति वचन पलटै, सौ मिस्रित उक्ति कहावै । अथ मिस्रित उक्ति उदाहरण सोरठौ वांण सराहै वाण, खाग सराहै समर खळ । मौज उझळ महरांण, सारा है रघुबर सुकव ॥ २० __ इति नव उक्ति निरूपण । अथ अग्यारह प्रकार डिंगलकी जथा निरूपण अथ अग्यारह जथा नाम छंद चंद्रायण विधांनीक सर सिर फिर वरण वखांणजै । अहिगत आदसु अंत सुध पिण आणजै ॥ १८. कधियण-कविजन, कवि । दोई-दो ही। १६. मौ-मेरे । कज-लिए। सांभळ-सुन । सेस-लक्ष्मण । अवधेस-श्री रामचन्द्र । २०. दवाळा-गीत छंदके चार चरणका समूह। वांण-वारणी। वांण-सरस्वती या पंडित । खाग-तलवार। समर-युद्ध । खळ-शत्र । मौज-उदारता, दान । ऊझळ-तरंग, लहर। महरांण (महार्णव)-सागर। सारा है-प्रशंसा करते हैं। निरूपण-निर्णय, विचार । २१. ग्यारह जथाओंके नाम-विधांनीक, सर, सिर, वरण, अहिगत, अाद, अंत, सुध, अधिक, न्यून और सम। पिण-भी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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