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रघुवरजसप्रकास
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वारता आठमी कवि-कल्पित स्रीमुख उक्ति कहावै, जिणमें कवियण नै स्रीमुखरौ वयण दोनई नीसरै।
वारता ___स्रीरांमजीरौ बचन लछमणप्रतिनै यूं कहियौ-अवधेस कवियण दोनूं भेळा छै।
अथ कवि कल्पित स्रीमुख उक्ति उदाहरण
कोपै तं मौ राज कज, सांभळ वायक सेस । गरवां मत ग्रहियो नहीं, यं कहियौ अवधेस ॥ १६
वारता नवमी मिस्रत उक्ति जठ गीत कवित्त छंदादिकमें तुक-तुक प्रति तथा दवाळा दवाळा प्रति वचन पलटै, सौ मिस्रित उक्ति कहावै ।
अथ मिस्रित उक्ति उदाहरण
सोरठौ वांण सराहै वाण, खाग सराहै समर खळ । मौज उझळ महरांण, सारा है रघुबर सुकव ॥ २०
__ इति नव उक्ति निरूपण । अथ अग्यारह प्रकार डिंगलकी जथा निरूपण
अथ अग्यारह जथा नाम छंद चंद्रायण विधांनीक सर सिर फिर वरण वखांणजै । अहिगत आदसु अंत सुध पिण आणजै ॥
१८. कधियण-कविजन, कवि । दोई-दो ही। १६. मौ-मेरे । कज-लिए। सांभळ-सुन । सेस-लक्ष्मण । अवधेस-श्री रामचन्द्र । २०. दवाळा-गीत छंदके चार चरणका समूह। वांण-वारणी। वांण-सरस्वती या पंडित ।
खाग-तलवार। समर-युद्ध । खळ-शत्र । मौज-उदारता, दान । ऊझळ-तरंग, लहर। महरांण (महार्णव)-सागर। सारा है-प्रशंसा करते हैं। निरूपण-निर्णय,
विचार । २१. ग्यारह जथाओंके नाम-विधांनीक, सर, सिर, वरण, अहिगत, अाद, अंत, सुध,
अधिक, न्यून और सम। पिण-भी।
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