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________________ रघुवरजसप्रकास यभ दास तारण‍ वास 1 पोह छंड कमाळा पासतै । सुरतुर गिर कर स्रवण स्त्रीवर । तळप परहर अतुर चढ तुर । चकरघर मग सघर संचर । सिथळ पर घर जांण ईसर । छांड नगधर धरण दूछर । मकर यर सर चकर मोखर । फंद हर पग सथर कर फिर । वळ सुकर गह सुकर रघुबर, तार सिंधुर तांम ॥ १६४ अरथ ईं प्रकारसूं च्यार ही दूहां दूसरी त्रकुटबंध जांणज्यौ । Jain Education International । २५३ अथ गीत सुपंखरौ वरण छंद लछण दूहौ धुर तुक अखर ठार घर, चवद सोळ चवदेख | सोळ चवद क्रम अंत लघु, जपै सुपंखरौ जेण ॥ १६५ अरथ चवदै होय । तीजी सुपंखरौ गोत वरण छंद तिरपरै मात्रा गिणती नहीं । अखिर गिणती होय । जीरे पहली तुकरा प्रखर अठारै होय । दूजी तुक प्रखर तुक प्रखर सो होय । चौथी तुक प्राखर चवर्द होय । पाछला दूहांरी पै'ली तुक हर तीजी तुक प्राखर सोळ होय । दूजी, चौथी तुक प्राखर चवदै होय । तुकांत लघु होय । जीं गीतनै सुपंखरी कहीजै । १६४. यभ (इभ) - हाथी । दास-भक्त । वासतै लिए । पोह- प्रभू । छंड छोड़ कर । कमळालक्ष्मी | पास-पास से तळप ( तल्प ) - शय्या, पलंग । परहर छोड़ कर । चकरधरविष्णु | मग - मार्ग । सधर- सधैर्यं । संचर - गमन । सिथळ-मंद। जांण-समझ कर, जान कर । छांड-छोड़ कर । नगधर - गरुड़ । दूछर-वीर । मकर-ग्राह । यर-शत्र ु । चकर-चक्र | मोख' र छोड़ कर । फंद - बंधन, जाल । हर - मिटा कर । सथरस्थिर, अटल | वळ-फिर । सुकर - हाथ । गह पकड़ कर सिंधुर - हाथी, गज । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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