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रघुवरजसप्रकास सामरथ भभीखण रंक राखै सरणा, तसां आपण सुदत लंक तेहा, रजवट्ट रक्खणा ॥ अवधरा धणी रिण सीह भंजण असह, लीह संतांतणी निकं लोपै, भणै किव भेदमें। तई सामाथ प्रभ बंधु दीनांतणा, अनाथां नाथ भुज बिरद अोपै, वणे कथ वेदमें ॥ ६० अथ गीत लेहचाळ अथवा लहचाळ लछण
चौपई कळ दस धुर फिर आठ सकांम । मझ तुक विखम दोय विसरांम ॥ सम अठ अंत रगण जीकार । चतुर गीत लैहचाळ उचार ॥ ६१
प्ररथ
पैली तुक मात्रा १८ होय । दोय विसरांम पैलो मात्रा १० दूजो मात्रा पाठ पर, ऊहीं तुक तीजी विखम मात्रा विसरांम मोहरा होय । गुरु लघुको नेम नहीं । तुकांत तुक सम दूजी चौथी जीकै मात्रा पनरह आठ मात्रा पछै रगण पछै जीकार सबद होय । यूं दूजी चौथी तुक होय । यण प्रकार सरव दवाळा होय, जिण गीतरौ नांम लहचाळ कहीजै।
६०. सामरथ-समर्थ । भभीखण-विभीषण । तसां-हाथों । पापण-देने वाला। तेहा-तैसा,
वैसा। रजवट्र-क्षत्रियत्व, शौर्य । रक्खणा-रखने वाला । रिण-रण, युद्ध । भंजण-नाश करने वाला, मिटाने वाला। असह-शत्रु । लीह-रेखा, मर्यादा। संतांतरणी-संतोंकी।
सामाथ-समर्थ । विरद-विरुद । श्रोपै-शोभा देता है । कथ-कथा, वृत्तांत ।। ६१. मझ-मध्य । विखम-विषम । विसरांम-विश्राम । अठ-आठ । ऊहीं-ऐसे ही । मोहरा
तुकबंदी । नेम-नियम । यूं-ऐसे ही । यण-इस ।
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