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________________ २] रघुवरजसप्रकास बिबुध-भाख ब्रज-भाख बिच, पिंगळ बोहत प्रसिद्ध । मुरधर-भाखा जिण निमंत, 'किसनै' रूपग किद्ध ।। ३ जांणण छंदां मुख जपण, राघव -जस दिन - रात । भाडो सांठौ ज्यू भरै, जाणौ पोहकर जात ॥ ४ पेट काज नर जस पढे, औ कारज अहलोक । जस राघव जपणौ जिकौ, लेख काज परलोक ॥ ५ जुध करणौ जमराज हू, काज विलंब केण । तव नस-दीहा हर तिको, जीहा दीधी जेण ॥ ६ अथ गरणागरण वरणरण* मगण त्रिगरु यगणह लघु, प्राद कहै सह कोय । ३. बिबुध-भाख-देववाणी। निमंत-लिए। रूपग-वह काव्य-ग्रंथ जिसमें किसी महान योद्धाका चरित्र हो या वह रीतिग्रंथ जिसमें विशेषकर डिंगलके गीत छंदोंकी रचना आदिके नियमों का वर्णन हो। किद्ध-किया । ४. भाड़ौ-(सं. भाटक) किराया। सांठी-अधिक, ईख । पोहकर-पुष्कर । जात-यात्रा। ५. अहलोक-इहलोक, यह संसार । लेख-समझ, समझना। ६. केण-किसलिए। तव-(स्तवन) स्तुति । नस-दीहा-निशि-दिन। हर-(हरि) ईश्वर । जीहा-जिह्वा। जेण-जिससे, जिसने । नाम रेखारूप वर्णरूप लघु संज्ञा शुभाशुभ मगरण मागाना यगरण 555 । 55 ऽ ।। यगाना भागन नमन रामना भगरण नगरण रगरण सगरण तगण जगण । ।। SSI ।5। सगना तागान जगान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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