________________
श्रीगणेशाय नमः । श्रीगुरुगणपतीष्ट देवताभ्यो नमः * ॐ नमः श्रीसीतारामाय
अथ आढ़ा किसनाजी क्रत पिंगल रघुवरजसप्रकास
लिख्यते
श्रीगणेस स्तुति
छप्पै कवित्त-भाखा मुरधर श्री लंबोदर परम संत बुद्धवंत परम सिद्धिबर । आच फरस ओपंत, विघन-बन हंत ऊबंबर ॥ मद कपोल महर्कत, मधुप भ्रामंत गंधमद।
नंद महेसुर जन निमंत, हित दयावंत हद ॥ उचरंत 'किसन' कवि यम अरज, तन अनंत भगति जुगत । जानकी-कंत अक्खण सुजस, एकदंत दीजै उगत ॥ १
प्रथम भ्रहंम मझ बेद, छंद मौरग दरसायौ । खग अग पिंगळनाग, 'नागपिंगळ' कर गायौ ।। 'काळिदास', 'केदार', 'अमर गिर पिंगळ अक्खे।
भाखा ब्रज सुखदेव, 'सुरतचिंतामण' भक्खे ॥ लछ भाखा पिंगळ ग्रंथ लख, एकठ बोह मत आंणियो। रघुबरप्रकास जस नाम रख, 'किसन्न' सुकव पिंगळ कीयौ ॥२
१. पाच-हाथ । फरस-परशू । प्रोपंत-शोभा देता है। हत-नाशक । ऊबंबर-समर्थ ।
निमंत-नमते हैं, झकते हैं। हद-असीम । यमइस प्रकार ।
लिए, वर्णन करनेके लिए। एकदंत-गणेश। उगत-उक्ति । २. मझ-मध्य । खग-गरुड़। अग-सम्मुख। पिंगळनाग-शेषनाग ।' नागपिंगळ
'नागराज पिंगळ' नामक छंदशास्त्र का ग्रंथ । गायौ-वर्णन किया। अक्खे-कहा, सूनाया। भक्खे-कहा, वर्णन किया। लच्छ-लक्षण। एकठ-एकत्रित । बोह-बहत ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org