SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रघुवरजसप्रकास [ २५ अथ अस्ट विध वरण प्रस्तार ज्यांका उदिस्ट, नस्ट लिखां छां । वारता वरण सुद्ध १ हर वरण सुद्धका प्रकारांतरको तौ सदा व्है छ ज्यू हीज छ । हर बाकीरा छ प्रकारको लिखां छां । अथ वरण स्थान विपरीतका प्रकारांतर दोयको उदिस्टको लछण । चौपई ऊलट क्रम दखिणसू अंक, रूप वरण सिर धरौ नसंक। ऊपर गुरु अंक जे आवै, पूरण अंक मधि तिके घटावै ।। ७८ बाकी रहैस भेद बिचार, सब तज भज राघौ गुण सार ॥ ७६ अथ वरण स्थान विपरीत ईका प्रकारांतरको नस्ट कहां छां । दूहौ दखिण क्रमसू भाग दै, सम लघु रूप सराह । विखम एक दे गुरु करौ, उलट नस्ट आ राह ॥ ८० अथ वरण संख्या विपरीतको हर ईंका प्रकारको उदिस्ट कहां छां । दूहौ यक सूं दुगणा रूप सिर, दै क्रम अंक कवेस । गुरु सिर अंकां एक मिळ, आखव रूप असेस ॥ ८१ अथ वरण संख्या विपरीत हर प्रकारांतर दोनू को नस्ट कहां छां। चौपई सूधा क्रमस कळपौ भाग, विखम थांन लघु करि अनुराग । विखम एक मिळ आध कराय, समथळ गुरू विखम लघु थाय ॥८२ है छै-होते हैं। ७८. नसंक-निःसंदेह । मधि-मध्य । कहां छां-कहता हूँ। ८०. श्रा-यह । राह-तरीका। ८१. कवेस-कवीश। पाखव-कह । प्रसेस-अपार । ८२. कळपौ भाग-भाग करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy