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रघुवरजसप्रकास
प्ररथ
भाखड़ीनांमा गीतकै पै'ली तौ प्रांकणीको एक दवाळी होय, सौ दवाळी भाखड़ीका सारा दवाळांकै प्रागै पढयौ जाय, जी अांकणीका दवाळाको पैली तुक मात्रा इग्यारे, चौथी तुक मात्रा नव होय और गुरु अंत होय और भाखड़ीका दवाळाकी सारी तुकां प्रत मात्रा छाईस होय । अंत लघु होय, जों गीतको नाम भाखड़ी कहीजै। मात्रा उपछंद छै ।
अथ गीत भाखड़ी उदाहरण
गीत खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ रिणवटां राघव खळां रहचण भुजबळां अणभंग । सुज पळां प्रधळां दियण समळां, गळां ग्रीध सुचंग ॥ चळवळां जोगण खपर चढवै, सिंभ कमळां स्रग। जग गीत चिहूंवै-वळां जाहर, सुजस हुवै सुढंग ॥ खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ भड़भड़े के लड़थडै भारथ, अड़े के अखडैत । वड़बडै के हड़हडै वीजळ, जडै के जरदैत ॥
अड़वड़े के धड़हडै आतस, जुड़े के कज जैत ।
विच समर हेकण धडै राघव, बडै रंग बिरदैत ॥ १४३. खग-तलवार। दत-दान । खटा-प्राप्त करें। रजवटां-क्षत्रियत्व। थरण-ध्वंश
करना, नाश करना, संहार करना। खळ-शत्रु । थटां-दल । रिणवटां-युद्धों। रहचण-संहार करनेको। अणभंग-नहीं भगने वाला वीर। पळा-मांस । प्रघळांबहत । दियण-देने वाला। समळां-मांसाहारी पक्षी विशेष । गळां-मांस-पिंडों। चळवळ-रक्त, खून । जोगण-योगिनी, चंडी । सिंभ-शंभु, महादेव । कमळां-मस्तकों। संग (शृक)-माला। चहंवैवळां-चारों ओर । सुढंग-श्रेष्ठ । भड़-योद्धा । भडैभिड़ते हैं, युद्ध करते हैं। लड़थडे-लड़खड़ाते हैं। भारथ (भारत)-युद्ध । अड़े-पड़ते हैं, भिड़ते हैं। के-कई। अखडैत-योद्धा । वड़वड़े-भिड़ते हैं। हड़हडे-हंसते हैं। वीजळ-तलवार । जई-प्रहार करते हैं। जरदैत-कवचधारी योद्धा । अडवडे-हड़बड़ाते हैं। धड़हड़े-तोपोंकी ध्वनि होती है। जुडै-भिड़ते हैं। कज-लिये । जैतविजय । विच-बीच में । समर-युद्ध । हेकण-एक । धड़े-तरफ, अोर, दलमें । बिरदैतबिरुदधारी, वीर।
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