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रघुवरजसप्रकास
। २४३ खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ पह बीरहाक पनाक पणचां, बाज डाकत्रबाक । असनाक पर ग्रीधाक श्रावध, करग बाज कजाक ॥ चठठा करत खप्पराक चंडी, राग बज अयराक। रिणछाक चढ़ रिव ताक राघव, लखण सहित लड़ाक ॥ खग दत ब्रद खटांजी राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ पाराथ सेवग अाथ आपण करण सिध मन काथ । दसदूण हाथ समाथ दाटक, मार खळ दसमाथ ॥ जुड़हाथ माथ नमाय जपै, गुणां 'किसनौ' गाथ । सरणाय लंक समाथ समपण, निमौ स्त्री रघुनाथ ॥ खग दत व्रद खटांजी, राखण रजवटां। थूरण खळ थटांजी, राधव रिणवटां ॥ १४३
अथ अन्य विधि गीत भाखड़ो लछण
धुर नव मत जीकार फिर, चवद गुरू लघु अंत ।
एम च्यार तुक अांकणी, किव भाखड़ी कहंत ॥ १४४ १४३. बीरहाक-वीर-ध्वनि । पनाक-धनुष । पणचां-प्रत्यंचाओं। डाक-डंका । त्रबाक-नगाड़ा ।
चट्ठा-द्रव पदार्थको जीभसे खींच कर पीनेसे होने वाली ध्वनि । अयराक-तेज, भयंकर। रिणछाक-युद्धोन्मत्तता। रिव (रवि)-सूर्य । लखण-लक्ष्मण। लड़ाकयोद्धा । पाराथ-प्रार्थना । सेवग-भक्त। प्राथ-धन-दौलत । प्रापण-देनेको । काथ-कथा। दसण-बीस । समाथ-समर्थ । दाटक-जबरदस्त, महान । खळराक्षस । दसमाथ-रावण । जुड़हाथ-कर-बद्ध होकर। माथ-मस्तक । नमायनमा कर, झुका कर । जंपै-कहता है। गणा-यश, कीर्ति । गाथ-कथा, गाथा। सरणायशरण में आया हुअा। समाथ-समर्थ । समपण-समर्पण करनेको, समर्पण करने
वाला। १४४. धुर-प्रथम । मत-मात्रा । चवद-चौदह । कहत-कहते हैं।
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