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रघुवरजसप्रकास अथ गीत दुतीय भाखड़ी उदाहरण
गीत सीवर सारणौ जी, केतां निबळ संतां काम । महपत मारणौ जी, मह जुध फरसधरसां मांम ॥ घजबंध धारणौ जी, बंका बरद भुज बरियांम । सरण-सधारणौ जी, रिवकुळ आभरण रघुराम ॥ रघुराम भूपत आभरण, रिववंस अडर अरेह । भुज धरण बंका बिरद अणभंग, तीख खित्रवट तेह ॥ दिल गहर ओपत सुतण दसरथ, बोल मुखलखबेह । सुत पूर आसां सरब समरथ, निपट दासां नेह ॥ १४५ अथ गीत अरधभाखड़ी तृतीय लछण
दूही अरध दवाळी अांकणी, बीजौं अरध वखांण । अरधभाखड़ी कवि अखै, जुगत त्रिहूं विध जाण ॥ १४६ अथ गीत अरधभाखड़ी उदाहरण
गीत आरख अंगरा जी दुती भळळाट रवि दरसेण ।
रूप अनंगरा जी जोयां हुवै रद छबि जेण ॥ १४५. सीवर (श्रीवर)-विष्णु, श्री रामचन्द्र । सारणी-सिद्ध करने वाला, सफल करने
वाला। केतां-कितने। निबळ-निर्बल । महपत (महिपति)-राजा। मारणौ-मारने वाला । फरसधरसां-परशुरामजीसे । माम-गर्व, प्रतिष्ठा । धजबंध-वीर । धारणौधारण करने वाला। बंका-बांकुरे। बरद-विरुद। बरियांम-श्रेष्ठ । सरण-सधारणौ शरणमें पाए हुएकी रक्षा करने वाला। प्राभरण-प्राभूषण । रिववंस (रविवंश)सर्यवंश । तीख-विशेषता। खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता । गहर-गंभीर । प्रोपत-शोभा
देता है । सुतण-पुत्र । बोल-यश, शब्द । निपट-बहुत । दासां-भक्तों। नेह-स्नेह । १४६. दवाळी-गीत छंदके चार चरणका समूह । बीजौ-दूसरा। अखे-कहते हैं। जुगत
युक्ति । त्रिहूं-तीनों । विध-विधि, प्रकार, तरह। जांण-समझ।। १४७. पारख-चिन्ह, लक्षण । दुति (द्यति)-कांति, दीप्ति । भळळाट-चमक, दमक । रवि
सूर्य। दरसेण-दर्शनसे। अनंगरा-कामदेवका। जोयां-देखने पर। रद-खराब, निकम्मा, रद्द । छबि-शोभा । जेण-जिससे ।
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