SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ । रघुवरजसप्रकास अथ गीत दुतीय भाखड़ी उदाहरण गीत सीवर सारणौ जी, केतां निबळ संतां काम । महपत मारणौ जी, मह जुध फरसधरसां मांम ॥ घजबंध धारणौ जी, बंका बरद भुज बरियांम । सरण-सधारणौ जी, रिवकुळ आभरण रघुराम ॥ रघुराम भूपत आभरण, रिववंस अडर अरेह । भुज धरण बंका बिरद अणभंग, तीख खित्रवट तेह ॥ दिल गहर ओपत सुतण दसरथ, बोल मुखलखबेह । सुत पूर आसां सरब समरथ, निपट दासां नेह ॥ १४५ अथ गीत अरधभाखड़ी तृतीय लछण दूही अरध दवाळी अांकणी, बीजौं अरध वखांण । अरधभाखड़ी कवि अखै, जुगत त्रिहूं विध जाण ॥ १४६ अथ गीत अरधभाखड़ी उदाहरण गीत आरख अंगरा जी दुती भळळाट रवि दरसेण । रूप अनंगरा जी जोयां हुवै रद छबि जेण ॥ १४५. सीवर (श्रीवर)-विष्णु, श्री रामचन्द्र । सारणी-सिद्ध करने वाला, सफल करने वाला। केतां-कितने। निबळ-निर्बल । महपत (महिपति)-राजा। मारणौ-मारने वाला । फरसधरसां-परशुरामजीसे । माम-गर्व, प्रतिष्ठा । धजबंध-वीर । धारणौधारण करने वाला। बंका-बांकुरे। बरद-विरुद। बरियांम-श्रेष्ठ । सरण-सधारणौ शरणमें पाए हुएकी रक्षा करने वाला। प्राभरण-प्राभूषण । रिववंस (रविवंश)सर्यवंश । तीख-विशेषता। खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता । गहर-गंभीर । प्रोपत-शोभा देता है । सुतण-पुत्र । बोल-यश, शब्द । निपट-बहुत । दासां-भक्तों। नेह-स्नेह । १४६. दवाळी-गीत छंदके चार चरणका समूह । बीजौ-दूसरा। अखे-कहते हैं। जुगत युक्ति । त्रिहूं-तीनों । विध-विधि, प्रकार, तरह। जांण-समझ।। १४७. पारख-चिन्ह, लक्षण । दुति (द्यति)-कांति, दीप्ति । भळळाट-चमक, दमक । रवि सूर्य। दरसेण-दर्शनसे। अनंगरा-कामदेवका। जोयां-देखने पर। रद-खराब, निकम्मा, रद्द । छबि-शोभा । जेण-जिससे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy