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रघुवरजसप्रकास
[ २४५ जिण जोय रद छबि हुवै जाहर कौट काम काम । सुत भूप दसरथ नूप सोभा रूप रविकुळ रांम ॥ १४७
प्ररथ यण तरै च्यार दवाळा तथा यधक दवाळांई होय, तिणने अरधभाखड़ी कहीजै । तुक दो अांकणीरी हुवै ।
अथ गोखौ गीत लछण
बारह मत तुक आठ प्रत, आख वीपसा अंत । छीनूं मत दवाळ प्रत, यूं गोखौ आखंत ॥ १४८
प्ररथ बध गोखा गीतरै तुक पाठ होवै । तुक अंक प्रत मात्रा बारै होवै नै आठमी तुक वीपसा होवै, जिको गोखौ सावझड़ौ गीत कहीजै।
__अथ गीत गोखा उदाहरण
गीत साझीके बखत सांम, बेल संत बारियांम । ते कहै प्रथी तमांम, नमो आप आप नाम ॥ धार चाप तेज धांम, वांम अंग रमा बाम । किता सार संत काम, सिया राम सिया रांम ॥ १४६ __ अथ दुतीय गोखौ गीत लछण
दही मझ खट तुक बारह मता, बेद अठम नव जांण।
कळ नेऊ लघु अंत कह, इक गोखौ इम आण ॥ १५० १४७. जोय-देख कर । कौट-करोड़ । नूप (अनूप)-अद्भ त । यण-इस । तरै-तरह, प्रकार ।
यधक-अधिक । तिणनूं-उसको । हुवै-होती है। १४८. मत-मात्रा । प्रत-प्रति । पाख-कह । वीपसा (वीप्सा)-एक शब्दालंकार जिसमें अर्थ
या भाव पर बल देने के लिए शब्दावृत्ति होती है। दवाळ-गीत छंदके चार चरणोंका
समूह । यूं-ऐसे। पाखंत-कहते हैं। १४६. बेल-मदद । बारियांम-श्रेष्ठ । तमांम-सब । धार-धारण कर ! चाप-धनुष। वांम
बायां । रमा-लक्ष्मी, सीता। किता-कितने । सार-सफल कर । १५० मझ-मध्य । खट-छ। मता-मात्रा । बेद-चतुर्थ, चौथी। अठम-पाठमी। कळ
__ मात्रा। नेऊ-नब्बे । इक-एक । इम-ऐसे । प्राण-ला, रच ।
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