________________
२४६ ]
रघुवरजसप्रकास
प्ररथ दूजा गोखारै तुक तीन, पै'ली दूजी तीजी मात्रा बारै होय। तुक चौथी मात्रा नव होय । तुक पांचमी, छठी, सातमी मात्रा बार-बारै होय । तुक आठमो मात्रा नव होय । कुल मात्रा एक दवाळामें नवे होय । गुरु लघु तुकंत पैली दूजी तीजी मिळे । चौथी पाठमी मिळे । पांचमी छठी सातमी मिळे । कोई कवि यूं पिण गोखौ कहै छै तोई सावझड़ी छ ।
अथ दुतीय गोखा गीत उदाहरण
गीत साझीके बखत सांम, बेल संत बारीयांम । ते कहै प्रथी तमांम, नमो आप नाम ॥ धार चाप तेज धाम, बांम अंग रमा बाम । किता तार संत कांम, राम राम राम ॥ समै बंदगी सुरीस, देव तौ जपै दनीस । लाखलछीस, नांमणौ नरीस ॥ बाढ जंग भुजावीस, रीझियां लँका वरीस । कियौ जे सखा कपीस, ईस ईस ईस ॥ भेत गुणां गाथ भेव, आभडै न अहंमेव । ईदसा सुरा अजेव, साझ तास सेव ॥ कीरति वाणी कहेव, दिला धरै संभदेव ।
वाह जेण चेत वेव, देव देव देव ॥ १५०. यूं-ऐसे। पिण-भी। तोई-तब भी। १५१. सझे-करता है। बंदगी-टहल, सेवा। सुरीस (सुरेश)-इन्द्र । तौ-तुझे। दनीस
(दिनेश)-सूर्य । लछीस (लक्ष्मी+ईश)-विष्णु, श्री रामचन्द्र। नांमणौ-नमाने वाला, झुकाने वाला। नरीस (नरेश)-राजा । बाढ-काट कर । जंग-युद्ध । भुजा-बीसरावण । रीझिया-प्रसन्न होने पर। लंका-वरीस-लंकाका दान देने वाला। सखामित्र । कपीस-सुग्रीव । भेव-भेद । प्राभड़े-स्पर्श करता है। अहंमेव-अभिमान, गर्व । ईदसा-इन्द्र के समान । सुरा-देवता । साझ-करते हैं। तास-उस । सेव-सेवा । वांणीसरस्वती। कहेव-कहती है। संभ (शंभू)-शिव ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org