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________________ रघुवरजसप्रकास [ १६३ सिधां-सुत गंग अणभंग साहसीयां , सुज अजन सिधा यर नसियां साथ । हर दियै आब थट सिधां आहंसियां , निपट रवि-वंसियां आब रघुनाथ ॥ सह तरां रूप कळविरछ अवै सकळ , थरू दुत मेर सिखरां अथाघौ । नगां आकरतणौ रूपहर मणी निज , रूप कुळ दिवाकरतणौ राघौ ॥ सुरा-सुर नाग नर अडग राखण सरण , धरण धानंख दुखहरण सुख-धांम । सूर कु हेळक दुत करण अचरज किसं , राज त्रिभुवण प्रभा करण रघु-रांम ॥ ५८ अथ सुद्ध सांणौर गीत लछण तेवीसह मत पहल तुक, बी अठार ती बीस । चौथी तुक अठार चव, लघु गुरु अंत लहीस ॥ ५६ बीस अठारह क्रम अबर, दूहां मांझळ दाख । गीत सुध सांणौर गण, सौ अह-पिंगळ साख ॥ ६० वारता सुध सांणौररै पली तुक मात्रा २३, तुक दूजी मात्रा १६, तुक तीजी मात्रा बीस, तुक चौथी मात्रा १८, पछ दूजा साराई दूहांरी पैली तुक मात्रा बीस, दूज़ी तुक मात्रा १८ होवै। ५८. निपट-बहत, अधिक । प्राब-कांति, दीप्ति । सह-सब । तरां-तरुओं, वक्षों । कळविरछ-कल्पवृक्ष। प्रखै-कहते हैं। सकळ-सब । मेर-सुमेरु पर्वत । अथाघौवह जिसकी सीमाका थाह न हो, बहुत, बहुत ऊंचा। दिवाकरतणौ-सूर्यका, भानुका । राघौ-श्रीरामचंद्र भगवान । अचरज-पाश्चर्य । प्रभा-कांति, दीप्ति । ५६. मत-मात्रा। पहल-प्रथम । बी (द्वि)-दूसरी। ती-तीसरी। चव-कह । ६०. दूहां-गीत छंदके चार चरणोंका समूह । मांझळ-मध्य, में । दाख-कह। प्रह-पिंगळ शेषनाग । साख-साक्षी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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