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________________ रघुवरजसप्रकास अथ दुतिया दुमिळा निसांणी छंद लछण दूहौ धुर चवदह नव फेर घर, अंत गुरु लघु क्ख । यक तुक मिळ मोहरा उभै, सौ दुमिळा कवि सक्ख ॥ ६ अथ दुतिय दुमिळा निसांणी उदाहरण निसांरगी अह नर सुर कह कवण ओोड़, जै दत खग जोड़ । चक्रवत कर सुधा नीचोड़, मद वहिया मख रिख ठोड़ ठोड़, काटे तेगां खळ दसमाथ तोड़, रघुनाथ Jain Education International वंका भय अथ सुद्ध निसणी जांगड़ी (तीजो तुकांत लघु गुरु ) उदाहरण निसांरणी [ ३२७ मौड़ ॥ कौड़ । अरोड़ ॥ ७ तैं रघुनाथ बिसारिया, त्रिहुं ताप तपणा । छूटा गरभ ग्रभवासमें, बह बार छपणा || घर घर तन सी चियार, लख जोगां धपणा । खिणखिण आव संसारह, बुदबुद ज्यूं खपणा ॥ कर कर पर उपकार पुन, तन प्राचत कपणा । संसारी दा भगळखेल, जांगै जिम सपणा ॥ ६. धुर-प्रथम । श्रक्ख - कह । यक- एक । मोहरा - तुकबंदी । उ-दो । सक्ख - कह, साक्षी दे । ७. ग्रह-नाग । कवण - कौन । श्रोड़ समान । जै-जीत । दत - दान । जोड़-समानता । चक्रवत - राजा, चक्रवर्ती राजा । सुधा-सीधा । मद-गर्व । वंका-बाँकुरा । मौड़श्रेष्ठ । मख यज्ञ । रिख ऋषि । तेगां-तलवारों | खळ- राक्षस | दसमाथ-रावरण । तोड़-संहार कर, काट कर । श्ररोड़ जबरदस्त । ८. तैं - तूने । विसारिया - विस्मरण किया । त्रिहुं तीन । ताप-तप, तपस्या । तपणा तप करने वाला । गरभ - गर्व । ग्रभवास में - गर्भवासमें । बह-बहुत । छपांणागुप्त रहा। सीचियार- चौरासी । जोणां-योनियों । खिण-क्षरण । बुदबुद (बुद्ध बुद्ध) - पानीका बुल्ला बुल्ला, जलका फफोला । खपरणा- नाश होना । संसारीदा-संसारका । भगळ खेल - इन्द्रजाल, मायावी, धोखा | सपणा - स्वप्न । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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