________________
३२८ ]
रघुवरजसप्रकास आखर-दिन अवधेस विण, नह कोई अपणा । जिण कज हे मनरांम रांम, जीहा नित जपणा ॥ ८ अथ सुद्ध निसांणी जांगड़ी चौथी तुकांत दौ गुरु उदाहरण
निसारणी कदम सुभंदा मेरगिर, नहचळ मझ कंका । सुज तर बंक पधोर कोध, के सूध-सणंका ।। बहिया बाळ मुकाळ बुळ, हीया ब्रद बंका । डारण सज्झे दहकमळ, वज्जे जस डंका ॥ रिम सबळ मारण सुभाव, साधारण रंका । धू-धारण कारण जनां, कज सारण धंका ॥ आचां झौंक रामचंद, सुदतार असंका । लिन्हां-विण जिण दिन्हियां, सरणायत लंका ॥
अथ निसांणी मारू लछण
मत सोळह फिर बार मुण, दख मोहरे गुरु दोय । मारू नीसांणी मुणै, सुकव महा मत सोय ॥ १०
८. पाखर-दिन-मृत्यु-समय । कज-लिए। जीहा-जीभ । ६. कदम-चरण । सुभंदा-शोभा देते हैं। मेरगिर-सुमेरुगिरि । नहचळ-अटल, निश्चल ।
मझ-मध्य, में। कंका-युद्ध । कोध-किये, कियो । सूध-सणंका-बिलकुल सीधा । डारण-जबरदस्त । सज्झे-संहार किया, मारा। दहकमळ-रावरण। जस-यश, जिसका। रिम-शत्र । साधारण-उद्धार करने वाला, रक्षा करने वाला। रंका-गरीब । ध-धारण-निश्चय । कज-कार्य, लिए । सारण-सफल करने को। धंका-इच्छा। प्राचा-हाथों। झोक-धन्य-धन्य । प्रसंका-निर्भय, निशंक । लिन्हां-विण-बिना लिए ही। जिण--जिस । दिन्हियां-दे दी। सरणायत-शरणागत ।
१०. मत-मात्रा । बार-बारह । मुण-कह । दख-कह । मत-बुद्धि। सोय-वह ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org