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रघुवरजसप्रकास
[ ३२६ अथ मारू निसांणी उदाहरण
निसांगो कांम क्रोध मद लोभ मोह कर, अवस रहे अडगांणे । लाह नह रख न सोच अलाभे, मन संतोख समांणे ॥ सत्र मित्र पर भाव अक सम, पत्थ रहेम प्रमाणे । धरमें 'किसन' कहै ते नर धन, जे मन राघव जाणे ॥ ११
अथ निसांणी वार लछण
दूही मुण तुक प्रत जिण तीस मत, मगण क र तुकंत । वार निसांणी 'किसन' कवि, मत उपछंद मुणंत ।। १२
प्ररथ तुक अंक प्रत मात्रा तीस होय, तुकंत मगण अथवा रगण होय सौ निसांणी वार नामा मात्रा उपछंद छै ।
अथ वार नामा निसांणी उदाहरण
निसारणी बंध ग्राह दरीयाव बीच, पड़ संघट फील पुकारियां । ईस ऊबाहण-पाय आय, धर हत्थू सूंड उधारियां ॥ धू भजीया हरी धूधड़े, कर नहचळ ते सुखकारियां ।
सत-ब्रत भगती सज्झीयां, ते प्रळय पयोनिध तारियां ॥ ११. अवस-अवश्य अडगांणे-अटल, निश्चल । लाह-लाभ। संतोख-संतोष। समाणे
समा गया, समाया हुआ। सत्र-शत्रु। पत्थ-मार्ग। रहेम-ईश्वर । धर-पृथ्वी।
धन-धन्य। १२. मुण-कह । तुक प्रत-प्रति चरण । जिण-जिस । मत-मात्रा। क-या, अथवा ।
र-रगण गण । मुणंत-कहता है। १३. दरीयाव-सागर । संघट (संकट)-दुख । फील-हाथी। पुकारिया-पुकार करने पर ।
ऊबाहण-पाय-नंगे पैर । धर-पकड़ कर । हत्थू-हाथसे। उधारियां-उद्धार किया । ध-भक्त ध्रव । धड़े-निशंक, निर्भय । नहचळ-निश्चल । सत-ब्रत (सत्यव्रत)सातवें मनुका नाम, इक्ष्वाकुवंशी हरिश्चंद्रके पिताका नाम । सज्झीयां-साधन किया। ते-वे। पयोनिध-समुद्र, सागर ।
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