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________________ १२६ ] रघुवरजसप्रकास छंद विद्युन्माला (८ ग. अथवा म.म.ग.ग.) राघौ राजा सीता रांणी, वेदांमें धाता वाखाणी । सौ गावै जोई है साचौ, कीटांनं गावै सौ काचौ ॥ ४६ छंद मल्लिका (र.ज.ग.ल.) आच आब जेम आय, जोव तांस छीज जाय । कोय अंत नाय काम, रे अबझ गाय रांम ॥ ५० छद प्रमाणी तथा अरध नाराज तथा तुंग (ज.र.ल.ग.) लघु गुरु क्रम वरण अठ, छंद प्रमाणी कथ्थ । दोय नगण फिर करण दे, सौ कह तुंग समथ्थ ॥ ५१ छंद प्रमाणी नमौ नरेस राघवं, दराज पाय दाघवं । उपंत स्यांम अंगयं, सनीर अव ढंगयं ।। दकूळ पीत लोभयं, सुरूप बीज सोभयं । निखंग पीठ रज्जयं, सुचाप पांणि सज्जयं ॥ मुखारविंद मोहनं, सुमंद हास सोहनं । जु बांम अंग जानकी, सु सोभना समांनकी ।। ४६. धाता-ब्रह्मा । वाखांणी-वर्णन की, यश गायन किया। सौ-उस, वह । जोई-वही । साचौ-सच्चा। कीटांनं-कीटोंको, तुच्छ देवोंको। काचौ-कच्चा । ५०. मल्लिका प्रथम गुरु फिर लघु इस क्रमसे रखे हुए पाठ वर्णका छंद । प्राच-हाथ । प्राब-पानी। जेम-जैसे । प्राय-पायु, उम्र । छीज जाय-नाश हो रही है, नाश होती है। कोय-कुछ। अबूझ-मूर्ख । ५१. प्रमाणी-प्रमाणिका छंद । कथ्थ-कह । करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । समथ्थ-समर्थ । ५२. दराज-लंबा, विशाल । उपत-शोभा देता है। स्यांम-श्याम। अंगयं-शरीर । सनीर कांतिवान । दकळ-वस्त्र । पीत-पीला। लोभयं-लोभायमान करने वाला। बीजबिजली। सोभयं-शोभायमान । निखंग, (निषङ्ग)-तर्कश । रज्जयं-शोभायमान । सुचाप-संदर धनुष । पाणी-हाथ । सज्जयं-धारण किए हुए है। मुखारविद--कमलस्वरूपी मुख। मोहनं-मोहित करने वाला। सुमंद-सुंदर और मंद। हास-हँसी । सोहनं-शोभायमान होती है। बांम-बायां: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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