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________________ २८२ ] रघुवर जसप्रकास तायक लखण पयंपै तेथी । वायक रोस विरुता, है नर बीर जनक न राघव जेथी ॥ राघव मंगे । खित्रवट नूर उमंगे ॥ चहोड़े । जंप मुनि मित्त यस छक घण रोम ऊछाजै, बूटै ऊठै सूर चाप उठाय नमाय तोड़े खळां तंका, बरी सिया राघव डंका मुखहूंता । विराजै 1 दासरथी बँका | रोड़ै || २२६ Jain Education International अथ गीत त्रिकौ लछण दूहौ सोळ कळा धुर सोळ बी, ती बतीस गुरवंत । त्रि बखत उलटै तुक त्रती, कविस त्रिबंक कहंत ॥ २२७ अरथ पैली तुक मात्रा सोळं होय । दूजी तुक मात्रा सोळ होय । तोजी तुक मात्रा बतीस होय । जिण तीजी तुकरै दोय मात्रा तौ प्राद नै पछे दोय चौकळ गण ज्यांन तीन बखत पढणा उलट-पलट करने, जठा पछै छ मात्रा फेर हुवै, तुक तीनका मोहरा मिळें । एक दोय गुरुको तौ नेम ही नहीं पिण तुकंत गुरु हो सौ त्रको गीत कहीजै । अथ गीत बंक उदाहरण गोत रे राखै ऊजळ भाव रदा, गहिया कज नीरज चक्र गदा । सुज रे मन राघव रे मन राघव, रे मन राघव जाप सदा ॥ २२६. लखण लक्ष्मण । पयंपै कहता है । तेथी-वहां । विरुता - पूर्णं । मुखहंता - मुखसे । जंप - कह । राघव - रामचन्द्र भगवान । जेथी- जहां । छक-जोश । चहौड़े चढ़ाते हैं । प्रकाप्रातंक | For Private & Personal Use Only २२७ सोळ - सोलह । कळा-मात्रा | बी- दूसरी । ती-तीसरी । त्रती-तीसरी । कहंतकहते हैं । जठा पछै - जिसके बाद । २२८. भाव-विचार । रदा - हृदय । कज-कमल । नीरज-शंख । जाप जप, स्मरण कर । www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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