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रघुवर जसप्रकास
तायक लखण पयंपै तेथी ।
वायक रोस विरुता, है नर बीर जनक न राघव जेथी ॥
राघव मंगे । खित्रवट नूर उमंगे ॥
चहोड़े ।
जंप
मुनि मित्त यस छक घण रोम ऊछाजै, बूटै ऊठै सूर
चाप उठाय नमाय
तोड़े खळां तंका, बरी सिया
राघव
डंका
मुखहूंता ।
विराजै
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दासरथी बँका | रोड़ै || २२६
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अथ गीत त्रिकौ लछण
दूहौ सोळ कळा धुर सोळ बी, ती बतीस गुरवंत । त्रि बखत उलटै तुक त्रती, कविस त्रिबंक कहंत ॥ २२७
अरथ
पैली तुक मात्रा सोळं होय । दूजी तुक मात्रा सोळ होय । तोजी तुक मात्रा बतीस होय । जिण तीजी तुकरै दोय मात्रा तौ प्राद नै पछे दोय चौकळ गण ज्यांन तीन बखत पढणा उलट-पलट करने, जठा पछै छ मात्रा फेर हुवै, तुक तीनका मोहरा मिळें । एक दोय गुरुको तौ नेम ही नहीं पिण तुकंत गुरु हो सौ त्रको गीत कहीजै ।
अथ गीत बंक उदाहरण गोत
रे राखै ऊजळ भाव रदा, गहिया कज नीरज चक्र गदा । सुज रे मन राघव रे मन राघव, रे मन राघव जाप सदा ॥
२२६. लखण लक्ष्मण । पयंपै कहता है । तेथी-वहां । विरुता - पूर्णं । मुखहंता - मुखसे । जंप - कह । राघव - रामचन्द्र भगवान । जेथी- जहां । छक-जोश । चहौड़े चढ़ाते हैं । प्रकाप्रातंक |
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२२७ सोळ - सोलह । कळा-मात्रा | बी- दूसरी । ती-तीसरी । त्रती-तीसरी । कहंतकहते हैं । जठा पछै - जिसके बाद ।
२२८. भाव-विचार । रदा - हृदय । कज-कमल । नीरज-शंख । जाप जप, स्मरण कर ।
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