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रघुवरजसप्रकास
[ ३३.१: झूठ अवाच अपूठ महाजुध, दूठ सरूठ अदंडांदंडण । भुज परचंड मंड जय भासत, खंडपरस कोदंड बिखंडण ॥ दसरथनंद निकंद पाप दळ, घणनांमी आणंदतणौ घण । संतां काज सकाज सुधारण, महाराज सुरराज सिरोमण ॥ दीनदयाळ पाळकर गौ दुज, निज प्रिया सिया मनरंजण । जाप 'किसन' मा बाप राम जस, भव त्रय ताप पाप दळ भंजण॥ १५
अथ निसांणी झींगर लछण
दूहौ धुर अठार फिर चवद धर, मोहरे मगण मिळत । झींगर निसांणी जिकाह, 'किसन' कवेस कहंत ॥ १६ अथ झींगर निसांणी उदाहरण
निसारणी जिण कीड़ी कुंजर जीव दुनीदा, रूप चराचर रच्चा है। रक्ख हत्थं डोर लख चौरासी, नाच नच्चाय नच्चा है॥ तिणदी विण जोत गोत मिट्टी तन, 'किसन' कहै सब कच्चा है।
बोलै स त संम्रत स्यंभ अज वायक, सीतानायक सच्चा है ॥१७ १५. अवाच-नहीं कहना । अपूठ-पीठ फेरनेकी क्रिया। द्रठ-जबरदस्त । सरूठ-क्रोध करने
पर । प्रदंडांदंडण-जो किसीसे दंडित न किया जाय ऐसे समर्थको अथवा जो कुटिल हो उसको भी दंड देने वाला । खंडपरस-महादेव। कोदंड-धनष । बिखंडण-तोडने वाला। निकंद-नाश करने वाला, नाश । सुरराज-इन्द्र। सिरोमण-शिरोमणि, श्रेष्ठ । पाळकर-पालन करने वाला। गौ--गाय। दुज (द्विज)-ब्राह्मण । सिया-सीता । मनरंजण-प्रसन्न करने वाला । जाप-जप कर, भजन कर। भव-संसार । त्रय-तीन ।
ताप-दुख । दळ-समूह । भंजण-मिटाने वाला। १६. मोहरे-तुकबंदीमें । मिळंत-मिलता है। कवेस (कवीश)-महाकवि । कहंत-कहता है,
कहते हैं। १७. कीड़ी-चिउंटी। कुंजर-हाथी। दुनीदा-संसारका। रच्चा है-रचा है, बनाया है।
हत्थू-हाथ। चौरासी-चौरासी लाख जीव योनि । तिणदो-उसकी। सतश्रुति । संम्रत-स्मृति । स्यंभ-शंभु, शिव। प्रज-ब्रह्मा। वायक-वाक्य, वचन । सीतानायक-सीतापति, श्रीरामचंद्र। सच्चा है-सत्य है।
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