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रघुवरजसप्रकास अथ निसांणी सीहटप लछण
दूही तुक प्रत मत छबीस तव, तगण क जगण तुकंत । सौ निसांणी सीहटप, हणु आंकणी कहंत ॥ १८
प्ररथ प्रत तुक मात्रा छावीस होय । तुकंतमें जगण बोहत होय। कठैक तगण गण पण तुकंतमें होय । दोय तुकारै पछै हण इसा सबदरी प्रांकणी होय सौ निसांणी सीहटप पण कहीजै।
अथ सीहटप निसांणी उदाहरण
निसांगी यक आद-पुरुख अनादसू दख भ्रहम माया दोख । त्रय भ्रहम विसन महेस ने गुण हुवा जिण जग होय ॥ हणु हुवा जिण जग होय हरखित चाह बेद चियार । तत पंच कर खट तरक तै दरियाव सात उदार ॥ हणु सात दध दस आठ सर जे नवे ग्रह नर नाह । अवतार दस कर रुद्र ग्यारह बारह मेघ दुबाह ॥ हणु बारह मेघ नीर विरचित मास तेरह मंड । दस च्यार विद्या रतन दाखव पनर तिथि परचंड ॥ हणु पंच दस तिथ सोळ कळ पढ सरस नार सिंगार । साहस सतरह खंड गूजर थाप ग्रांम बिथार ॥ हण थाप गांम बिथार भार अठार वन कर भेद ।
उगणीस वरसे भोम जोबन विसावीस अखेद ॥ १८. तुक प्रत-प्रति चरण । मत-मात्रा। छबीस-छब्बीस । तव-कह । क-या, अथवा ।
कठेक-कहीं पर। १६. यक-एक। पाद-पुरुख-प्रादि पुरुष। दख-कह । भ्रहम-ब्रह्मा । विसन-विष्णु।
महेस-महादेव। दध (उदधि) सागर, समुद्र । दाखव-कह । तिथ-तिथि, तारीख । सोळ-सोलह । बुध-पंडित । खंड-देस। विसावीस-पूर्ण, पूरा।
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