SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ ] रघुवरजसप्रकास जांनसुकर सर जिण अतुल पराक्रम वेद खै, 'किसनेस' सुकव दख सौ सिं... भाखै, रदि चाप Jain Education International सुधर, सखै दिव " भखै ॥ ६० सिस सूर निस भव कंज दूहौ मत चाळीस | कर दुजवर नव रगण हिक, चव पै कवी खंजा छंद सौ, मुण कीरत लिछमीस ॥ ६१ 1 छंद खंज 1 रखण जन सरण रघुराज कौसळ कंवर, धनुख सर धरण कर सकळ सुख धांम है । भरत्थ अरिहा लछण भ्रात अग्रज सुभग महा, मन हरण घण रूप तन स्यांम है सरल तन सहज दन मुकत दायक सुमत, गजगमणी जांनकी भांम गुण ग्रांम है । रात दिन हुलस मन सुजस 'किसनेस' रट रखण जन मांग तरुकांम रघु रांम है ॥ ६२ " दूहौ बार प्रथम तेरह दुतीय, रगण अंत विस्रांम | मांझ चरण पचीस मत्त, निज गगनागा नांम ॥ ६३ ६०. श्राजांनसुकर - आजानबाहु । सर - बाण, तीर । चाप-धनुष । सिस - ( शशि ) चन्द्रमा । सूर-सूर्य । सखै - साक्षी देते हैं । दख-कह । निस दिव-रात दिन । रवि-हृदय । ६१. लिछमीस - (लक्ष्मी + ईश ) विष्णु, श्रीरामचन्द्र । ६२. भरत्थ-भरत । श्ररिहा - शत्रुघ्न । लछण- लक्ष्मण । घण - ( घन) बादल । मुक्त-मुक्ति, मोक्ष | गजगमणी - गजगामिनी । भांग - भामिनी । गुण ग्रांम - गुणोंका समूह । जनभक्त । मांम-प्रतिष्ठा, मर्यादा। तरुकांम - कल्प वृक्ष । ६३. बार-बारह | मांझ-मध्य में । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy