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रघुवरजसप्रकास
जांनसुकर सर जिण अतुल पराक्रम वेद खै, 'किसनेस' सुकव दख सौ सिं... भाखै,
रदि
चाप
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सुधर,
सखै
दिव
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भखै ॥ ६०
सिस सूर
निस
भव कंज
दूहौ
मत चाळीस |
कर दुजवर नव रगण हिक, चव पै कवी खंजा छंद सौ, मुण कीरत लिछमीस ॥ ६१
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छंद खंज
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रखण जन सरण रघुराज कौसळ कंवर, धनुख सर धरण कर सकळ सुख धांम है । भरत्थ अरिहा लछण भ्रात अग्रज सुभग महा, मन हरण घण रूप तन स्यांम है सरल तन सहज दन मुकत दायक सुमत, गजगमणी जांनकी भांम गुण ग्रांम है । रात दिन हुलस मन सुजस 'किसनेस' रट रखण जन मांग तरुकांम रघु रांम है ॥ ६२
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दूहौ बार प्रथम तेरह दुतीय, रगण अंत विस्रांम | मांझ चरण पचीस मत्त, निज गगनागा नांम ॥ ६३
६०. श्राजांनसुकर - आजानबाहु । सर - बाण, तीर । चाप-धनुष । सिस - ( शशि ) चन्द्रमा । सूर-सूर्य । सखै - साक्षी देते हैं । दख-कह । निस दिव-रात दिन । रवि-हृदय ।
६१. लिछमीस - (लक्ष्मी + ईश ) विष्णु, श्रीरामचन्द्र ।
६२. भरत्थ-भरत । श्ररिहा - शत्रुघ्न । लछण- लक्ष्मण । घण - ( घन) बादल । मुक्त-मुक्ति, मोक्ष | गजगमणी - गजगामिनी । भांग - भामिनी । गुण ग्रांम - गुणोंका समूह । जनभक्त । मांम-प्रतिष्ठा, मर्यादा। तरुकांम - कल्प वृक्ष ।
६३. बार-बारह | मांझ-मध्य में ।
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