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रघुवरजसप्रकास सट पटत भर सेस अति चकित अरेस , दिन धं धळ दिनेस थरराहइ अर साथ । निहसंत नीसांण ह वै बाज हींसांण , सझ काज घमसांण अपांण भड़ ओघ । नप दासरथनंद सौ कारुणासिंध , जस राच राजिंद मुख वाच आमोघ ॥ ६८
दूही
दुजबर नव ता पछ रगण, करण ता पछ होय । अरध फेर गाथा अधर, माळा कहजै सोय ॥ ६६
टुंद माला अवधपति अनम सुज, तेज रवि कौट सम , सियपति सरम रख लख जनां आधार है आखां । नप राघव जगनायक लायक , भूपाळ लेण जस लाखां ॥ ७०
दही
सात टगण फिर त्रिकळ यक,अंत रगण इक आंण । मत सैंताळी पायमें, पंच वदन सौ जाण ॥ ७१
६८. अरेस-(अरीश) शत्रु । धूंधळ-धूलि आच्छादित, धूमिल, धुंधला। दिनेस
सूर्य । थरराहइ-कंपायमान होते हैं। पर (अरि)-शत्रु । साथ-सेना, दल, समूह । निहसंत-बजते हैं । नीसांण-नगाड़ा। व्है-होता है, होती है। हींसाण-हिनहिनाहट । घमसांण-युद्ध । अपांण-शक्तिशाली। प्रोध-समूह । सौ-वह । कारुणासिंध-(करुणा
सिंधु) दयासागर । प्रामोघ (अमोघ)-प्रव्यर्थ, अचूक। ६६. करण-दो दीर्घका नाम 55। सोय-वह। ७०. रवि-सूर्य । कौट-करोड़ । लख-लाखों। आखां-कहता हूँ। ७१. पाय-चरण ।
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