SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० ] रघुवरजसप्रकास सट पटत भर सेस अति चकित अरेस , दिन धं धळ दिनेस थरराहइ अर साथ । निहसंत नीसांण ह वै बाज हींसांण , सझ काज घमसांण अपांण भड़ ओघ । नप दासरथनंद सौ कारुणासिंध , जस राच राजिंद मुख वाच आमोघ ॥ ६८ दूही दुजबर नव ता पछ रगण, करण ता पछ होय । अरध फेर गाथा अधर, माळा कहजै सोय ॥ ६६ टुंद माला अवधपति अनम सुज, तेज रवि कौट सम , सियपति सरम रख लख जनां आधार है आखां । नप राघव जगनायक लायक , भूपाळ लेण जस लाखां ॥ ७० दही सात टगण फिर त्रिकळ यक,अंत रगण इक आंण । मत सैंताळी पायमें, पंच वदन सौ जाण ॥ ७१ ६८. अरेस-(अरीश) शत्रु । धूंधळ-धूलि आच्छादित, धूमिल, धुंधला। दिनेस सूर्य । थरराहइ-कंपायमान होते हैं। पर (अरि)-शत्रु । साथ-सेना, दल, समूह । निहसंत-बजते हैं । नीसांण-नगाड़ा। व्है-होता है, होती है। हींसाण-हिनहिनाहट । घमसांण-युद्ध । अपांण-शक्तिशाली। प्रोध-समूह । सौ-वह । कारुणासिंध-(करुणा सिंधु) दयासागर । प्रामोघ (अमोघ)-प्रव्यर्थ, अचूक। ६६. करण-दो दीर्घका नाम 55। सोय-वह। ७०. रवि-सूर्य । कौट-करोड़ । लख-लाखों। आखां-कहता हूँ। ७१. पाय-चरण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy