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रघुवरजसप्रकास
छंद पंच-वदन रघुवर महाराज गाव नहचै यक पळ न लाव , रंक करै सोई राव सुद्ध भाव सांम रे। दीनबंधु देवदेव भाखत स्र ति भ्रहम भेव , जेता जग सौ अजेव गहर गरुड़ गांम रे । जळद नील देह जेह तड़िता पट पीत तेह , गोव्यंद सत कत गेह सीत नेह संजणं । राखण मिथळेसराज लाखवात अघट लाज , करि अमाप सबळ करग भरग चाप भंजणं ।। ७२
दही झै मात्रा उपछंद, कहिया मत माफक 'किसन'। नहचै सुण रघुनंद, निज सेवगां निवाजसी ॥ ७३
इति मात्रा उपछंद संपूरण। अथ मात्रा असम चरण छंद वरणण
. दहौ मरण जनमचौ सळ मिटण, सौ सलभ व्है संभार । जंम मौ सळ भंजै जिसौ, कौसळ राजकंवार ।। ७४ नर तन पावै जे नरा, गुण गावै गोव्यंद। जनम सफळ थावै जिकै, फिर नावै जम फंद॥ ७५
७२. राव-राजा। सांम-स्वामी । भ्रहम-ब्रह्मा । भेव-भेद । जेता-जीतने वाला । अजेव
(अजय)-जो किसीसे जीता न जा सके । गहर-गंभीर । जळद-बादल । जेह-जिस । तड़िता-बिजली। तेह-उस। गोव्यंद-गोविन्द । सीत-सीता, जानकी। नेह-स्नेह, प्रेम । संजणं-साधन करने वाला। करग-हाथ । भरग-भगु मुनि, परशुराम ।
चाप-धनुष । भंजणं-भजन करने वाला। ७३. अ-ये। मत-मति, बुद्धि । माफक-माफिक । निवाजसी-प्रसन्न होंगे। ७४. चौ-का । सळ-कष्ट । सलभ-सुलभ । संभार-स्मरण कर। मौ-मेरा । जिसौ-जैसा । ७५. गण-यश, कीर्ति । गोब्यंद-गोविंद । फंद-जाल, बंधन ।
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