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________________ ६२ ] रघवरजसप्रकास अथ मात्रा असम चरण छंद वरणण । तत्रादि दोहा छंद दूही तेर मत्त पद प्रथम त्रय, दुव चव ग्यारह देख । अख सम पूरब उत्तर अध, लछण दूहा लेख ॥ ७६ अन्य लछण दूहा सुज उलटायां सोरठौ, सांकलियौ आदत । मध्य मेळ दूहौ मिळे, तव तं बेरौ तंत ॥ ७७ अजामेळ पर प्राविया, साठ सहंस जम साज।। नांम लियां हिक नारियण, भड़ सोह छूटा भाज ॥ ७८ __ सोरठौ प्रगट ऊब्हाणे पाय, आयौ सोह जाणै यळा । सिंधुरतणी सिहाय, कीधी धरणीधर ‘किसन' ॥ ७६ सांकलियौ हौ। मत जकड़ी भव माग, मकड़ी जाळा जेम मन । हर द्रढ़ कर पकड़ी हिया, लकड़ी हरी पळ लाग ॥ ८० ७६. तेर-तेरह । मत्त-मात्रा। त्रय-तृतीय । दुव-दूसरा द्वितीय। चव-चतुर्थ । लछण-लक्षण। ७७. मध्य मेळ दूहौ-वह दोहा छंद जिसकी तुकबंदी द्वितीय और तृतीय चरणसे की जाती है। इस दोहा छंदका दूसरा नाम तूंबेरा (तूंबेरी) भी है। तव-कह । तंत-उसे । ७८. सहस-सहस्र । जम-यम, यमदूत । साज-सुसज्जित होकर । हिक-एक । नारियण नारायण । भड़-योद्धा । सोह-सब । भाज-भग कर । ७९. ऊब्हाण-नंगे पैर । यळा-इला, पृथ्वी, संसार । सिंधर-गज, हाथी। तणी-की। सिहाय-सहाय, सहायता । कीधी-की। धरणीधर-ईश्वर । ८०. सांकळियौ-वह दोहा छंद जिसकी तुकबन्दी प्रथम चरण और चतुर्थ चरणसे की जाती है। इस दुहा (दोहा) छंदका दूसरा नाम अन्तमेळ भी है। कहीं-कहीं इसे बड़ा दूहा भी कहा गया है। मत-मति, बुद्धि । जकड़ी-बंधन में की गई। भव-संसार। मकड़ी-(सं०मर्कटक) पाठ प्रांखों और पाठ पैरों वाला एक कीड़ा जो दीवारों आदि पर अपना जाल बनाने में प्रसिद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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